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________________ स्वयंभू स्तोत्र टीका भावार्थ - वस्तु सामान्य रूप से न तो जन्मती है न नाश होती है बराबर चली जाती है यह बात प्रगट है । परन्तु विशेष या पर्याय की अपेक्षा उपजती भी है नाश भी होती है । इस तरह एक ही वस्तु में एक काल उत्पाद विनाश व स्थिरपना पाया जाता है । सामान्य स्वभाव की अपेक्षा स्थिरपना है विशेष की अपेक्षा उत्पत्ति व नाश है । सुवर्ण का कंकरण तोड़कर कुण्डल बनाया गया । सुवर्ण दोनों में सामान्य है सो बना रहता है । विशेष जो कंकरण सो नाश होता है तब कुण्डल विशेष पैदा होता है । हे सुमतिनाथ ! आपका ऐसा गाढ़ व सुन्दर मत है । सो ही हो सकता है, क्योंकि श्राप केवलज्ञानी हैं । आपने यथार्थ जानकर वैसा ही यथार्थ बताया है । ४४ त्रोटक छन्द मुनि नाम सुमति सत् नाम धरे । सत् युक्तिमई तुम उचरे ॥ तुम भिन्न मतों नाहि बने । सब कारज कारक तत्त्व घने ।। २१ ।। उत्थानिका - ऐसा जो श्रापका युक्तिसहित मत है उसीको प्रागे दिखाते हैंश्रनेकमेकं च तदेव तत्त्वं भेदान्वयज्ञानमिदं हि सत्यम् । मृषोपचारोऽन्यतरस्य लोपे, तच्छंबलोपोऽपि ततोनुपाख्यम् ||२२|| " अन्वयार्थ - (तत्त्वं ) जीवादि तत्त्व ( अनेक ) अनेक स्वभाव रूप है क्योंकि एक जीवमें कभी सुख कभी दुःख कभी बाल कभी कुमार कभी युवान प्रादि श्रवस्थाएँ देखने में आती हैं । (तदेव च एक) वही जीवादि तत्व एक रूप भी है क्योंकि अपनी सर्व पर्यायों में वही एक द्रव्य है | ( इदं भेदान्वयज्ञानं ) यह भेद ज्ञान और प्रभेद ज्ञान प्रर्थात् पर्याय की अपेक्षा भिन्न २ पनेका ज्ञान व द्रव्यकी अपेक्षा एकपनेका ज्ञान (सत्यं ) सत्य है, वास्तविक है बाधा रहित है ( उपचारः) यदि दोनोंमें एकको तो मानोगे व एकको मात्र उपचार व श्रारोप मात्र व कल्पना मात्र मानोगे, अर्थात् एकरूप तत्व मानने वाले अनेकको उपचार कहें व अनेकरूप मानने वाले एकको उपचार कहें यह उपचार बिना यथार्थ वस्तु स्वरूपके तो (मृषा) मिथ्या ही है । क्योंकि ( ग्रन्यतरस्य लोपे ) इनमें से एक किसी स्वभावका लोप कर देनेसे अर्थात् सर्वथा एकरूप व सर्वथा प्रनेक रूप माननेसे ( तच्छेषलोपः अपि ) उस शेष दूसरेका भी लोप हो जायगा । क्योंकि द्रव्य पर्यायके विना नहीं रहता और पर्याय द्रव्यके बिना नहीं रहती । यदि द्रव्यको मानो और पर्यायको न मानो तो दोनोंका प्रभाव होगा और यदि पर्यायको मानो द्रव्यको न मानो तो दोनों का प्रभाव होगा (ततः अनुपाख्यं ) तब वस्तुका स्वभाव मिट जानेसे वस्तुका कथन भी
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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