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________________ [ ७ ] हूँ (येऽपि) जो (भवन्तः तिष्ठन्ति) वर्तमान समयमें विराज रहे हैं । क्या करते हुए ? (परमसमाधिमहाग्निना) परमसमाधिरूप महा अग्निकर (कर्मेन्धनानि) कर्मरूप ईधनको (जुह्वन्तः) भस्म करते हुए । अब विशेष व्याख्यान है-उन सिद्धोंको मैं वीतराग निर्विकल्पस्वसंवेदन ज्ञानरूप परमार्थ सिद्ध भक्तिकर नमस्कार करता हूं। कैसे हैं वे? अब वर्तमान समयमें पंच महाविदेहक्षेत्रों में श्रीसीमंधरस्वामी आदि विराजमान हैं । क्या करते हुए ? वीतराग परमसामायिकचारित्रकी भावनाकर संयुक्त जो निर्दोष परमात्माका यथार्थ श्रद्धान-ज्ञान-आचरणरूप अभेद रत्नत्रय उस मई निर्विकल्पसमाधिरूपी अग्निमें कर्मरूप ईधनको होम करते हुए तिष्ठ रहे हैं । इस कथनमें शुद्धात्मद्रव्यकी प्राप्तिका उपायभूत निर्विकल्प समाधि उपादेय (आदरने योग्य) है, यह भावार्थ हुआ ।।३।। - अथ स्वरूपं प्राप्यापि तेन सम्बन्धादनुज्ञानवलेन ये सिद्धा भूत्वा निर्वाणे वसन्ति तानहं वन्दे ते पुणु वंदउँ सिद्ध-गण जे णिव्वाणि वसंति । णाणिं तिहुयणि गस्या वि भव-सायरि ण पडंति ॥४॥ तान् पुनः वन्दे सिद्धगणान् ये निर्वाणे वसन्ति । ज्ञानेन त्रिभुवने गुरुका अपि भवसागरे न पतन्ति ॥४॥ आगे जो महामुनि होकर शुद्धात्मस्वरूपको पाके सम्यग्ज्ञानके बलसे कर्मोंका क्षयंकर सिद्ध हुए निर्वाण में बस रहे हैं, उनको मैं वन्दता हूँ-(पुनः) फिर ('अहं') मैं (तान्) उन (सिद्धगणान्) सिद्धोंको (वन्दे) वंदता हूँ, (ये) जो (निर्वाणे) मोक्षमें (वसन्ति) तिष्ठ रहे हैं । कैसे हैं, वे (ज्ञानेन) ज्ञानसे (त्रिभुवने गुरुका अपि) तीनलोकमें गुरु हैं, तो भी (भवसागरे) संसार-समुद्रमें (न पतन्ति) नहीं पड़ते हैं ॥ भावार्थ-जो भारी होता है, वह गुरुतर होता है, और जल में डूब जाता है, वे भगवान् त्रैलोक्यमें गुरु हैं, परन्तु भव-सागरमें नहीं पड़ते हैं। उन सिद्धोंको मैं वंदता हूँ, जो तीर्थकर परमदेव, तथा भरत, सगर, राघव, पांडवादिक पूर्वकालमें वीतरागनिर्विकल्प स्वसंवेदनज्ञानके बलसे निजशुद्धात्मस्वरूप पाके, कर्मोंका क्षयकर, परमसमाधानरूप निर्वाण-पदमें विराज रहे हैं उनको मेरा नमस्कार होवे यह सारांश हुआ ।।४॥
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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