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________________ परमात्मप्रकाश [ २६३ रक्त न वस्त्रेन यथा बुधः देहं न मन्यते रक्तम् । देहेन रक्त न ज्ञानी तथा आत्मानं न मन्यते रक्तम् ।।१७८।। जोर्णन वस्त्रेण तथा बुधः देहं न मन्यते जीर्णम् । देहेन जीर्णेन ज्ञानी तथा आत्मानं न मन्यते जीर्णम् ।।१७।। वस्त्रे प्रणष्टे यथा वुधः देहं न मन्यते नष्टम् । नष्टं देहे ज्ञानी तथा आत्मानं न मन्यते नष्टम् ।।१८०॥ भिन्नं वस्त्रमेव यथा जीव देहात मन्यते ज्ञानी। देहमपि भिन्न ज्ञानी तथा आत्मनः मन्यते जानीहि ।।१८१।। आगे पूर्वकथित भेदविज्ञानको भावना रक्त पीतादि वस्त्रके दृष्टान्तसे चारहोंमें प्रगट करते हैं-(यथा) जैसे (बुधः) कोई बुद्धिमान पुरुष (रक्त वस्त्रे ) लाल त्रसे (देहं रक्त) शरीरको लाल (न मन्यते) नहीं मानता, (तथा) उसी तरह ज्ञानी ) वीतराग निर्विकल्प स्वसवेदनज्ञानी (देह रक्त) शरीरके लाल होनेसे आत्मानं) आत्माको (रक्त न मन्यते) लाल नहीं मानता । (यथा बुधः) जैसे ई बुद्धिमान् (वस्त्रे जीर्णे) कपड़ेके जीणं [पुराने] होनेपर (देहं जीर्णं) शरीरको र्ण (न मन्यते ) नहीं मानता, ( तथा ज्ञानी) उसी तरह ज्ञानी (देहे जीण) रोरके जीर्ण होनेसे (प्रात्मानं जीर्णं न मन्यते) आत्माको जीर्ण नहीं मानता, (यथा नः) जैसे कोई बुद्धिमान् (वस्त्रे प्रणष्टे) वस्त्रके नाश होनेसे (देहं नष्टं) देहका श (न मन्यते) नहीं मानता, (तथा ज्ञानी) उसी तरह ज्ञानी (देहे नष्टे) देह नाश होने से (आत्मानं) आत्माका (नष्टं न मन्यते) नाश नहीं मानता, (जीव) जीव, (यथा ज्ञानी) जैसे ज्ञानी (देहाद् भिन्नं एव) देहसे भिन्न ही (वस्त्रं यते) कपड़ेको मानता है, (तथा ज्ञानी) उसी तरह ज्ञानी (देहमपि) शरीरको ( आत्मनः भिन्नं ) आत्मासे जुदा (मन्यते) मानता है, ऐसा (जानीहि ) - जानो। भावार्थ- जैसे वस्त्र और शरीर मिले हुए भासते हैं, परन्तु शरीरसे वस्त्र हा है, उसी तरह आत्मा और शरीर मिले हुए दिखते हैं, परन्तु जुदा हैं। रको रक्तताते, जीर्णतासे, और विनाशसे आत्माको रक्तता जोर्णता और नाश नहीं होता, यह निःसन्देह जानो। यह आत्मा व्यवहारनय कर देहमें स्थित है,
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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