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________________ २६२ ] परमात्मप्रकाश भावार्थ-आत्मस्वभाव महानिर्मल है, भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्ग ये सब जड़ हैं, आत्मा चिद्र प है । अनन्त ज्ञानादि गुणरूप जो चिदानन्द उससे तू सकल प्रपंच भिन्न मान ।।१७६।। अथ तामेव देहात्मनोर्भेदभावनां द्रढयति जेम सहाविं हिम्मलउ फलिहउ तेम सहाउ। भंतिए मइलु म मरिण जिय मइलउ देवाववि काउ ॥१७७॥ यथा स्वभावेन निर्मलः स्फटिकः तथा स्वभावः । भ्रान्त्या मलिनं मा मन्यस्व जीव मलिनं दृष्ट्वा कायम् ।।१७७।। आगे देह और आत्मा जुदे-जुदे हैं, यह भेद-भावना दृढ़ करते हैं--(यथा) जैसे (स्फटिकः) स्फटिकमणि (स्वभावेन) स्वभावसे (निर्मलः) निर्मल है, (तथा) उसीतरह (स्वभावः) आत्मा ज्ञान दर्शनरूप निर्मल है । ऐसे आत्मस्वभावको (जीव) हे जीव, (कायं मलिनं) शरीरकी मलिनता (दृष्ट्वा) देखकर (भ्रांत्या) भ्रमरी (मलिनं) मैला (मा मन्यस्व) मत मान । ___भावार्थ-यह काय शुद्ध बुद्ध परमात्मपदार्थसे भिन्न है, काय मैली है, आत्मा निर्मल है ।।१७७॥ अथ पूर्वोक्तभेदभावना रक्तादिवस्त्रदृष्टान्तेन व्यक्तिकरोति चतुष्कलेनरत्तें वत्थे जेम वुहु देव ण मरणाइरत्तु । देहिं रतिं णाणि तहं अप्पु ण मराणा रत्तु ।।१७।। जिगिंण वस्थि जेम बुहु देहु ण मगणइ जिराणु । देहिं जिगिंण णाणि तहं अप्पु ण मगगाड़ जिगरगु ।।१७६।। वत्थु पणइ जेम वुहु देहु रा मगगाइ ? । ग? देहे गणाणि तह अप्पु ण मगगाइ टु ॥१८०॥ भिगाउ वत्थु जि जेम जिय देहहं मराणइ गाणि । देह वि भिगाउं णाणि तहं अपहं मगणइ जाणि ॥१८॥
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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