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________________ परमात्मप्रकाश [ २२५ द्वादशाङ्गरूप सिद्धान्त (काव्यं) गद्य-पद्यरूप रचना इत्यादि (यद् वस्तु कुसुमितं) जो वस्तु अच्छी या बुरी दीखने में आती हैं, (सर्व) सब (इंधनं) कालरूपी अग्निका ईन्धन (भविष्यति) हो जावेगी। भावार्थ-निर्दोषी परमात्मा श्रीअरहन्तदेव उनको प्रतिमाके पधरानेके लिये जो गृहस्थोंने देवालय (जैनमन्दिर) बनाया है, वह विनाशीक है, अनन्त ज्ञानादिगुणरूप श्रीजिनेन्द्रदेवकी प्रतिमा धर्मको प्रभावनाके अर्थ भव्यजीवोंने देवालय में स्थापन की है, उसे देव कहते हैं, वह भी विनश्वर है । यह तो जिनमन्दिर और जिनप्रतिमाका निरूपण किया, इसके सिवाय अन्य देवोंके मन्दिर और अन्यदेवकी प्रतिमायें सब ही विनश्वर हैं, वीतरागनिर्विकल्प जो आत्मतत्व उसको आदि ले जीव अजीवादि सकल पदार्थ उनका निरूपण करनेवाला जो जैनशास्त्र वह भी यद्यपि अनादि प्रवृत्तिकी अपेक्षा नित्य है, तो भी वक्ता श्रोता पुस्तकादिककी अपेक्षा विनश्वर ही है, और जैन सिवाय जो सांख्य पातंजल आदि परशास्त्र हैं, वे सब विनाशीक हैं । जिनदीक्षाके देने वाले लोकालोकके प्रकाशक केवलज्ञानादि गुणोंकर पूर्ण परमात्माके रोकनेवाला जो मिथ्यात्व रागादि परिणत महा अज्ञानरूप अन्धकार उसके दूर करनेके लिये सूर्य के समान जिनके वचनरूपी किरणोंसे मोहान्धकार दूर हो गया है, ऐसे महामुनि गुरु हैं, वे भी विनश्वर हैं, और उनके आचरणसे विपरीत जो अजान तापस मिथ्यागुरु वे भी क्षणभंगुर हैं । ससार-समुद्रके तरनेका कारण जो निज शुद्धात्मतत्त्व उसकी भावनारूप जो निश्चयतीर्थ उसमें लीन परमतपोधनका निवासस्थान सम्मेदशिखर गिरनार आदि तीर्थ वे भी विनश्वर हैं, और जिनतोर्थके सिवाय जो पर यतियोंका निवास वे परतीर्थ वे भी विनाशोक हैं । निर्दोष परमात्मा जो सर्वज्ञ वीतरागदेव उनकर उपदेश किया गया जो द्वादशांग सिद्धान्त वह वेद है, वह यद्यपि सदा सनातन है, तो भी क्षेत्र की अपेक्षा विनश्वर है, किसी समय है, किसी क्षेत्र में पाया जाता है, किसी समय नहीं पाया जाता, भरतक्षेत्र ऐरावत क्षेत्र में कभी प्रगट हो जाता है, कभी विलय हो जाता है और महाविदेहक्षेत्र में यद्यपि प्रवाहकर सदा शाश्वता है, तो भी वक्ता श्रोताव्याख्यानको अपेक्षा विनश्वर है, वे ही वक्ता श्रोता हमेशा नहीं पाये जाते, इसलिये विनश्वर है, और पर मतियोंकर कहा गया जो हिसारूप वेद वह भी विनश्वर है । शुद्ध जीवादि पदार्थाका वर्णन करनेवाली संस्कृत प्राकृत छटारूप गद्य व छन्दवन्धरूप पद्य उस स्वरूप
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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