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________________ हृदयग्राही कथन किया है। फिर ८ दोहों में भेद रहित सम्यगदर्शन ज्ञान चारित्र का वर्णन है। और १४ दोहों में जीवों के समभावों का हृदयांकित भाषा में वर्णन है। पश्चात् १४ ही दोहों में पाप-पुण्यकी समानता, कर्म-बंधन एवं दशा का वर्णन है। ४१ दोहों में उपयोग पर प्रकाश डाला है। शुद्धोपयोग की दशा, स्वरूप, स्थिति, फल का वर्णन है । और अंत में परम समाधि का प्रभावोत्पादक कथन पाया जाता है। इस प्रकार द्वितीय अधिकार में ११६ दोहे और तीसरे महाधिकार में १०७ दोहे हैं। . प्रिय पाठकों ! अब प्रापको परमात्म प्रकाश की ज्ञानगंगा में २-४ डुबकी लगाने का अवसर देते हैं । यथा एक स्थल पर योगीन्दु देव कहते हैं- संसार-शरीर-भोग-निविण्णो भूत्वा यः शंद्धात्मानं ध्यायति तस्य संसार-बल्ली नश्यतीति ।' अर्थ-जो संसार-शरीर-भोगों से विरक्त मन होकर भात्मा शुद्धात्मा का ध्यान करता है वह संसार रूपी बेल का नाश कर देता है, अर्थात् कर्म बंधन से छूट जाता है । कितने मर्म की भीतरी तह खोली है। जबकि ध्यान तो अनेक जीत्र करते हैं पर अंतरंग संयम, अंतरंग विरक्तता कषाय प्रभाव से मुक्त हो जो शुद्ध निरजन आत्मा का चितवन करता है वह शुद्ध निरंजन ही हो जाता है । वास्तव में इस जोव ने बाह्यसंयम (दिगम्बर मुद्रा तक) को अनंत बार धारण किया है । पर अंतरंग विरक्त न हो सका, अभ्यंतर में परिग्रह से, मोह से नाता लगा रहा । फलतः कर्म बेल न कट सकी, यह भेद की बात है जिसका गुरुमंत्र है कि "संसार-शरीर-भोग-निविण्णो भूत्वा" अगर जीव एक बार भी इस मंत्र द्वारा आगे बढ़े, तो बढ़ते २ प्राप्त विशुद्ध परिणाम मोक्ष प्राप्त कराने में पूर्णतया सहायक होंगे । एक स्थल पर श्री योगीन्दु देव कहते हैं। सागार विरणागार, कुवि जो अप्पारिणवसेहि । सोलह पावहि सिद्धि सुह. जिरणवर एम भणेई ।। अर्थ-गृहस्थ हो या मुनि जो निज प्रात्मा में निवास करता है वह शीघ्र ही सिद्धि सुख को पाता है । देखिये कितना स्पष्ट सुलभ तत्त्व-दर्शन है। यह ग्रंथ अपभ्रंश भाषा का सबसे अधिक प्राचीन एवं महत्वपूर्ण ग्रंथ है । मुमुक्षु गणों के लिये यह रचना उनके हृदय का हार ही है । ऐसा भाव स्वाध्याय के बाद प्रगट
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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