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________________ परमात्मप्रकाश [ १६३ जीव पुण्य सहित हैं, तो भी पापी ही कहे हैं। तथा जो सम्यक्त्व सहित हैं, वे पहले भवमें उपार्जन किये हुए पापके फलसे दुःख दारिद्र भोगते हैं, तो भी पुण्याधिकारी ही ___ कहे हैं । इसलिये जो सम्यक्त्व सहित हैं, उनका मरना भी अच्छा । मरकर ऊपरको जायेंगे और सम्यक्त्व रहित हैं, उनका पुण्य-कर्म भी प्रशंसा योग्य नहीं है । वे पुण्यके उदयसे क्षुद्र (नीच) देव तथा क्षुद्र मनुष्य होके संसार-वनमें भटकेंगे। यदि पूर्वके पुण्यको यहां भोगते हैं, तो तुच्छ फल भोगके नरक-निगोदमें पड़ेगे। इसलिए मिथ्यादृष्टियोंका पुण्य भी भला नहीं है। निदानबन्ध पुण्यसे भवान्तरमें भोगोंको पाकर पीछे नरक में जावेंगे । सम्यग्दृष्टि प्रथम मिथ्यात्व अवस्थामें किये हुए पापोंके फलसे दुःख भोगते हैं, लेकिन अब सम्यक्त्व मिला है, इसलिये सदा सुखी ही होवेंगे । आयुके अन्त में नरकसे निकलके मनुष्य होकर ऊर्ध्वगति ही पावेंगे, और मिथ्यादृष्टि जो पुण्यके उदयसे देव भी हुए हैं, तो भी देवलोकसे आकर एकेन्द्री होवेंगे। ऐसा दूसरी जगह भी "वरं" इत्यादि श्लोकसे कहा है, कि सम्यक्त्व सहित नरकमें रहना भी अच्छा, और सम्यक्त्व रहितका स्वर्ग में निवास भी नहीं शोभा देता ।।५।। अथ तमेवार्थ पुनरपि द्रढयति जे णिय-दसण-अहिमुहा सोक्खु अणंतु लहंति । ति विणु पुण्णु करंता वि दुक्खु अणंतु सहति ॥५६॥ ये निजदर्शनाभिमुखाः सौख्यमनन्त लभन्ते । तेन विना पुण्य कुर्वाणा अपि दुःख मनन्तं सहन्ते ।।५।। अब इसी बातको फिर भी दृढ़ करते हैं-(ये) जो (निजदर्शनाभिमुखाः) सम्यग्दर्शनके सन्मुख हैं. वे (अनन्तं सुखं) अनन्त सुखको (लभन्ते) पाते हैं, (तेन विना) और जो जीव सम्यक्त्व रहित हैं, वे (पुण्यं कुर्वाणा अपि) पुण्य भी करते हैं, तो भी पुण्यके फलसे अल्प सुख पाके संसार में (अनंतं दुःखं) अनन्त दुःख (सहते) भोगते है । भावार्थ-निज शुद्धात्माकी प्राप्तिरूप निश्चय सम्यक्त्वके सन्मुख हुए जो सत्पुरुष हैं वे इसी भवमें युधिष्ठिर, भोम, अर्जुनकी तरह अविनाशी सुखको पाते हैं, और कितने ही नकुल सहदेवकी तरह अहमिंद्र-पदके सुख पाते हैं । तथा जो सम्यक्त्वले
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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