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________________ [ १२ ] : ..ये दोनों ही ग्रंथ महान् जैन संस्कृति के रक्षण करने वाले प्ररणीत हैं। केवल अध्यात्मरंस से ही श्रावकों को लाभ नहीं पहुंच सकता; समंतभद्राचार्य विरचित यह अनुपम स्तोत्र उनको मस्तिष्क शक्ति को भी जागृत रक्खेगा । इनका स्वाध्याय करके आप अन्य बालकों को भी मौखिक कण्ठस्थ करा देंगे तो यह जैन धर्मकी बडी सेवा होगी । महाराज की असीम कृपा से इस महंगाई के युग में भी इस विशाल ग्रंथ के निःशुल्क वितरण के उपलक्ष्य में यहां की समाज धन्यवाद के योग्य है । आज के युग में भौतिक वांछात्रों की पूर्ति के लिये तो लाखों रुपये खर्च किये जाते हैं किन्तु ऐसे शुभ कार्य में खर्च करना फिजूलखर्च समझते हैं, यह मिथ्याधारणा है । सो इस ओर ध्यान देकर पाठशाला व शास्त्र दान में उपयोगी खर्च करने का सभी भाई प्रयत्न करेंगे ऐसी आशा है । इस युग में अन्य नये मन्दिरादि के निर्माण की अपेक्षा भी उनके संरक्षण सम्बन्धी कार्यों में जीवन डालने की अधिक आवश्यकता है। आचार्यों की कृति के अमृत का प्रास्वादन कर हम भौतिक चाकचिक्य से दूर रह सकें, यही हमारी मंगल कामना है। अधिक क्या कहें, हमने परमात्म प्रकाश मूल ग्रंथ के तथा संस्कृत टीका के प्राशय में कहीं कम ज्यादा नहीं किया है, केवल जो प्रस्तावना अंग्रेजी में थी वह हम लोगों के किसी विशेष उपयोग में नहीं आती थी तथा संस्कृत भी हर एक के समझ में नहीं आती थी उसकी सबकी छपाई में खर्चा भी विशेष लगता था, यह सारी बातें सोचकर इस महान ग्रंथ का 'लघु परमात्म प्रकाश' नाम दिया है । इस विषय में प्रालोचनात्मक दृष्टिकोण नहीं रख कर इस ग्रंथ का स्वाध्याय करके महान् पुण्य संचय करें, ज्ञान व वैराग्य को बढ़ावें, इसी में कल्याण है । आलोचना करने में हानि ही हानि है, लाभ कुछ भी नहीं है । विज्ञेष्वलम् 2 E विनीत : पं० विद्याकुमार सेठी न्याय -काव्य - तीथं प्रधानाध्यापक राजमान्य दि० जैन विद्यालय कुचामन सिटी }
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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