SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कि चारित्र-विभूषण पूज्य विवेकसागरजी महाराज चातुर्मास के समय में कुली कैसे गये ? इसके विषय में स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है:-सबसे पहले तो महाराज ने चातुर्मास की स्थापना करते समय सबके समक्ष चारों तरफ बीस २ मील एरिया तक जाने के लिये खुला रखा था। इसके अतिरिक्त समाधिमरण के समय में प्राचार्यों की "ऐसी विशेष परिस्थिति में स्थान छोडकर भी साधु जा सकते हैं" इस प्राज्ञा के अनुसार महाराज श्री ने कुली पहुंचकर एक आदर्श गुरु व प्रादर्श शिष्य की परम्परा को चरितार्थ किया। संक्षेप में पूज्य महाराज के चातुर्मास स्थापना के हर्षोपलक्ष्य में श्री सेठ सर्वसुखजी भागचन्दजी सेठी ने अपनी ओर से सिद्धचक विधान बड़े समारोह से कराया । अढाई द्वीप मंडल विधान श्री ब्रह्मचारिणी कुसुमबाई के पिताजी श्री बापूलालजी चोरडिया (प्रोसवाल) ने कराया। भाद्रपद मास में समाज की ओर से कई मंडल विधान किये गये । वर्षायोग की समाप्ति पर तीन लोक मंडल विधान, रथयात्रा व वेदी प्रतिष्ठादि महान कार्य भी किये गये । मैं यहां के सभी कार्यकर्त्तानों की भूरि २ प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता जिन्होंने छोटे से स्थल में भी महाराज के आशीर्वाद से बहुत बड़ा कार्य ... कर लिया । निस्संदेह इसमें स्थानीय महिलाओं का तथा बालिकानों का भी बड़ा हाथ है जिन्होंने माताजी व संघस्थ ब्रह्मचारिणियों की अनुपम सेवा की है। श्री उम्मेदमलजी काला का नाम मैं नहीं भूल सकता जिन्होंने ६ मास से अपना खुदका धंधा छोडकर हर प्रकार से संघ की सेवा में ही भाग नहीं बटाया बल्कि हम लोगों की तथा बाहर से पधारे हये समस्त यात्री महानुभावों को तन, मन, धन से संभाल करके एक आदर्श कार्य-तत्पर सज्जन सिद्ध हुये । कार्य में तुरन्त निर्णय करने की शक्ति तथा उसको तत्काल पूर्ण करने की भावना आप में अद्भत है, इस वर्षायोग की सफलता में इनका पूरा हाथ रहा है। - यहां को समाज द्वारा अन्य खर्च तो किये ही गये साथ ही परमात्म प्रकाश व स्वयंभस्तोत्र की भाषा टीका स्व० श्री ब्र० शीतलप्रसादजी द्वारा कृत ग्रंथ का प्रकाशन करके अखिल भारतवर्षीय जैन समाज की संस्कृति के अभिवर्धन के कार्य में सहयोग दिया गया। . हमने अपनी ओर से कुछ नहीं लिखकर इन दोनों ग्रंथों के भावों को ज्यों का त्यों केवल शब्द-शुद्धि करके प्रकाशित कराया है । अतः इस कार्य का श्रेय हमें केवल गुरु-प्राज्ञा पालन मात्र ही है।
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy