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________________ . [ ] . तथा कुली समाज भी प्रशंसा के योग्य है जो उत्साह पूर्वक इस कार्य में भाग ले रही है । श्री विवेकसागरजी महाराज भी १५-२० दिन वहां रहकर पुनः वर्षायोग, स्थान पर वापिस पागये और इसका प्रायश्चित्त भी आपने आगमानुसार लिया। प्रसन्नता की बात है कि स्थानीय सज्जनों ने भी दिनरात किसी बात की चिन्ता नहीं करके इस कार्य में तन, मन, धन से पूर्ण सहयोग देकर एक आदर्श कार्य किया। बहत दिनों से यहां की धामिक पाठशाला बन्द पड़ी थी उसमें भी पूज्य महाराज श्री ने नवचेतना जागृत करके अपने सामने ही प० यतीन्द्रकुमारजी शान्त्री, प्रागरावालों की व्यवस्था करके स्थाई फंड कायम करवा दिया । आशा है कि यह कार्य भी आगे निविघ्न संपन्न होता रहेगा। कई भाई चाय आदि के त्याग से डरते थे, उन्होंने बहुत अधिक संख्या में अपनी शक्ति के अनुसार नियम लेकर अपने जीवन की सार्थकता सिद्ध की और आहारदान का लाभ लिया। वेदी-प्रतिष्ठा का कार्य भी कुछ आगे के लिये छोड़ा जाना था किन्तु सभी भाइयों ने एक मत होकर, इस अवसर को स्वर्ण अवसर समझकर बड़े उत्साह से वर्षायोग के समापन समारोह के उत्सव में चार चांद लगाने का कार्य किया। हम महाराज श्री के बड़े कृतज्ञ हैं कि उनकी कृपा से सारे संघ में शांति का व्यवहार रहा । हमारी ओर से खास व्यवस्था न होने पर भी कोई विपरीत वातावरण नहीं हुआ । यहां की समाजको आपके प्रवचनों के प्रानन्द व शांतिपूर्ण वातावरण से चातुर्मास का कुछ पता भी नहीं चला कि चातुर्मास कब खतम होगया । यह सुअवसर कुकनवाली के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायगा। वेदी प्रतिष्ठा तथा मंडल आदि को रचना में सभी भाइयों ने तन, मन, धन से सहयोग देकर महान् पुण्य संचय किया। इस अवसर पर हमारे परम सहयोगी कुचामन के पंडित श्री विद्याकुमारजी सेठी, श्री मारणकचन्द्रजी पाटोदी तथा समाज के विद्वान् प्रतिष्ठाचार्य श्री यतींद्रकुमारजी आदि के भी हम विशेष आभारी हैं जिन्होंने समय २ पर पूर्ण भाग लेकर हमें मार्ग-दर्शन किया है । विनीतदि० जैन वर्षायोग समिति की ओर से .... उम्मेदमल काला
SR No.010072
Book TitleParmatma Prakash evam Bruhad Swayambhu Stotra
Original Sutra AuthorYogindudev, Samantbhadracharya
AuthorVidyakumar Sethi, Yatindrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages525
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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