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________________ अपनी बात बडी ही प्रसन्नता की बात है कि विभिन्न अखिल भारतीय दिगम्बर जैन संस्थाओं के माध्यम से सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज आचार्य कुन्दकुन्द का द्विमहस्राब्दी समारोह विशाल पैमाने पर विविध आयोजनों द्वारा बड़े ही उत्साह से मनाने जा रहा है। किसी भी साहित्यकार से सम्बन्धित कोई भी उत्सव तब तक सफल और सार्थक नहीं हो सकता, जब तक कि उसके साहित्य का विपूल मात्रा में प्रकाशन, समुचित वितरण, पठन-पाठन, समीक्षात्मक अध्ययन न किया जाय; उनके व्यक्तित्व एवं कर्तत्व पर शोधकार्य न हो, उसका नाम जन-जन की जवान पर न आ जावे, उनका साहित्य घर-घर में न पहुंच जावे । इस महान कार्य का भार उठानेवाली संस्थानों को इस बात का अहसास गहराई से होगा ही और वे इस दिशा में सक्रिय भी होंगी। पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट एवं अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन ने भी इस दिशा में मिलकर काम करने का संकल्प किया है। युवा फेडरेशन इस सन्दर्भ में स्थान-स्थान पर विशेष प्रायोजन कर रहा है, उनके साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रयत्नशील है। पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट उक्त सन्दर्भ में श्रीमती डॉ० शुद्धात्मप्रभा द्वारा लिखित एवं राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा पीएच० डी० की उपाधि के लिए स्वीकृत शोधप्रबध "प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके टीकाकार : एक समालोचनात्मक अध्ययन" प्रकाशित कर चुका है। पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के महामंत्री-नेमीचन्दजी पाटनी एवं मन्त्री - जतीशचम्द शास्त्री, अध्यक्ष - अखिल भारतीय जैन युवा फेडरेशन ने मुझ से अनुरोध किया कि मैं प्राचार्य कुन्दकुन्द और उनके साहित्य के सन्दर्भ में एक ऐसी पुस्तक लिखू, जिसमें कुन्दकुन्द के जीवन के साथ-साथ उनके अध्यात्म का परिचय भी जनसाधारण को प्राप्त हो सके। अन्य व्यस्तताओं के कारण समय न होने पर भी मेरा मन इस प्राग्रह को अस्वीकार न कर सका, क्योंकि कुन्दकुन्द मेरे सर्वाधिक प्रिय आचार्य रहे हैं। पण्डितों में
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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