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________________ गुणात्मा । १॥२॥८॥ गुण से तात्पर्य है काव्य- शोभा - कारक ( शब्द और अर्थ के) धर्म का || २२|१| क्योंकि यह तो समस्त के धर्म' का अर्थ हुआ— इस प्रकार वामन के अनुसार रीति की परिभाषा हुई :- - काव्य- शोभाकारक शब्द और अर्थ के धमो से युक्त पद-रचना को रीति कहते हैं। यहां 'काव्य-शोभा-कारक शब्द और अर्थ के धर्मों से युक्त' शब्दावलो कुछ बिखरी हुई है। इसमें एक तो 'काव्य' शब्द अनावश्यक है प्रपंच ही काव्य का है । 'शाभा -कारक शब्द और अर्थ शब्द और अर्थ -गत सौन्दर्य - या शब्द- चमत्कार तथा अर्थवामनकृत परिभाषा का रूप हुआ : शब्द तथा अर्थ-गत चमत्कार से युक्त पदरचना का नाम रीति है । इसको और भी संक्षिप्त किया जा सकता है : 'शब्द तथा अर्थ- गत सौन्दर्य से युक्त' के स्थान पर केवल 'सुन्दर' का प्रयोग किया जा सकता है । सुन्दर पदरचना या सम्यक् पदरचना का नाम रीति है । - चमत्कार | और श्रतएव वामन के अनुसार " शब्द और अर्थ - गत सौन्दर्य से युक्त पदरचना का नाम रीति है ।" अथवा "सुन्दर पदरचना का नाम रोति है—यह सौन्दर्य शब्द-गत तथा श्रर्थगत होता है ।" वामन के उपरान्त धन्य श्राचार्यों ने भी रीति का लक्षण - श्रथवा स्वरूप निरूपण किया है । श्रानन्दवर्धन ने उसको संघटना नाम दिया है । सम्यक् अर्थात् यथोचित घटना — पदरचना का नाम संघटना अथवा रीति है । श्रानन्दवर्धन ने वास्तव में वामन की परिभाषा को ही संक्षिप्त कर दिया है । वामन का पद-रचना और श्रानन्दवर्धन का घटना शब्द तो पर्याय ही हैं : दोनो के विशेषणों में भी कोई मौलिक अन्तर नहीं है । वामन ने पदरचना को शब्द और अथं-गत सौन्दर्य से युक्त (गुणात्मक) कहा है, आनन्दवर्धन ने उसके लिए सम्यक् (यथोचित) विशेषण का प्रयोग किया है । श्रानन्दवर्धन के सामने रस का मानदण्ड था— - इसलिए उन्होंने तदनुकूल 'सम्यक्' – यथोचित् शब्द का ही प्रयोग किया क्योंकि रस को प्रमाण मानने के उपरान्त उसके अनुसार श्रौचित्य-निर्धारण सहज हो जाता है। वामन के समक्ष इस प्रकार का मानदण्ड कोई नहीं था —— उन्होंने शब्द अर्थ का ही चरम मान स्वीकार करते हुये शब्द और अर्थगत सौन्दर्य को विशेषण माना है । अतएव श्रानन्दवर्धन और वामन की परिभाषाओं में मौलिक साम्य होते हुए भी विशेषणों मे सूक्ष्म अंतर है श्रानन्दवर्धन के सिद्धान्तानुसार रीति रसाश्रयी है, अतएव उन्होंने घटना — या 1 (३) 1
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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