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________________ पदरचना के लिए 'सम्यक्-यथोचित्' विशेषण का प्रयोग किया है । वामन की रीति स्वतंत्र है-अतएव उनके मत से पदरचना का वैशिष्ट्य अपने शब्द और अर्थगत सौन्दर्य से अभिन्न है। आनन्दवर्धन की रीति रस-रूप सौन्दर्य की साधन है : "व्यनक्कि सा रसादीन्" (२०३५), वामन की रीति अपने आप में सिद्धि है। ___ आनन्द ने अपने मत का व्याख्यान करते हुए आगे लिखा है। संघटना तीन प्रकार की कही गई है-असमासा, मध्यमसमासा और दीर्घसमासा । ३, २॥ वह माधुर्यादि गुणों के आश्रय से स्थित रसों को अभिव्यक्त करती है । ३, ६॥२ ___ इस प्रकार आनन्दवर्धन ने रोति के सम्बन्ध मे तीन बाते कहो हैं:(७) रोति या संघटना के स्वरूप का आधार केवल समास है : उसी का श्राकार अथवा सद्भाव-अभाव रीतियों के विभाजन का आधार है। अर्थात् मूर्तरूप में रीति का स्वरूप-निर्धारण समास की स्थिति अथवा आकार द्वारा होता है। (२) रीति की स्थिति गुणों के आश्रय से है-नीति गुणाश्रयी है। (१) वह रसाभिव्यक्ति का माध्यम है। आनन्दवर्धन के उपरान्त राजशेखर ने रीति का विस्तारपूर्वक विवेचन किया है। उन्होंने रीति की परिभाषा की है : वचन-विन्यास-क्रमो रीतिः अर्थात् वचन-विन्यास का क्रम रीति है। यह परिभाषा वामन को परिभाषा से मूलतः भिन्न नहीं है केवल शब्दों का अंतर है। वचन का अर्थ है शब्द या पद और विन्यास-क्रम का अर्थ है रचना । राजशेखर ने काव्यपुरुष के रूपक का प्रसंग होने के कारण वाणी से सम्बन्ध रखने वाले शब्द प्रयुक्त किये हैंलेखन से सम्बद्ध शब्द नहीं। इसीलिए पद अथवा शब्द के स्थान पर वचन और रचना के स्थान पर विन्यास-क्रम का प्रयोग किया गया है। कुन्तक ने रीति का नाम फिर मार्ग रख दिया और रीति-विषयक विवेचन मे क्रान्ति उपस्थित करने का प्रयत्न किया । कुन्तक स्वतंत्र विचारवान् श्राचार्य थे-उन्होंने काव्य में कवि-स्वभाव को मुख्य मानते हुए उसी के १ असमासा, समासेन मध्यमेन च भूषिता । तथा दीर्घसमासेति त्रिधा सघटनोदिता ॥३, ५॥ २ गुणानाश्रित्य तिष्ठन्ती, माधुर्यादीन् व्यनक्ति सा । रसान्" "३, ६॥ (३६)
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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