SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय परिच्छेद का कर्ता ईश्वर किसी तरे भी सिद्ध नहीं होता। विशेष करके जगत्कर्ता ईश्वर' का खंडन देखना होवे, तो सम्मतितर्क, द्वादशसारनयचक्र स्याद्वादरत्नाकर, अनेकांतजयपताका, शास्त्रवार्तासमुच्चय-स्याद्वादकल्पलता, स्याद्वादमंजरी, स्याद्वादरत्नाकरावतारिका, सूत्रकृतांग, नंदीसिद्धांत, गंधहस्तीमहाभाष्य, प्रमाणसमुच्चय, प्रमाणपरोक्षा, प्रमाण मोमांसा, प्राप्तमीमांसा, प्रमेयकमलमार्तड, न्यायाचतार, धर्मसंग्रहणी, तत्त्वार्थभाष्य टीका, षड्दर्शनसमुच्चय, इत्यादि जैनमत के ग्रन्थ देख लेने इस वास्ते जो कामी, क्रोधी, छली, धूर्त, परस्त्री, स्वस्त्री का गमन करने वाला, नाचने वाला, गाने बजाने वाला, रोने पीटने वाला, भस्म लगाने वाला, माला जपने वाला, संग्राम करने वाला, तथा डमरु प्रादिक बाजे बजाने वाला, घर वा शाप के देने वाला, विना प्रयोजन अनेक प्रकार के क्लेशों में फंसने वाला, इत्यादिक जो अठारह दूपणों सहित है, सो कुदेव है । उस को ईश्वर मानना, सोई मिथ्यात्व है । इन कुदेवों को मानने वाले कि पत्थर की नावों पर बैठे हुए हैं । यह लिखने का प्रयोजन मात्र इतना ही है, कि कुदेव को कदे भी अर्हत भगवंत परमेश्वर करके नहीं मानना । इति श्रीतपागच्छीयमुनि श्रीवुद्धिार्वजय शिष्य मुनि आनन्दविजय-आत्मारामविरचते जैनतत्त्वादर्श द्वितीयः परिच्छेदः संपूर्णः
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy