SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सहनशीलता और दूरदर्शिता के आदर्श श्री उग्रसेन जैन, एम ए., एल-एल बी. रेलवे रोड, रोहतक आपका पत्र मिला, समाचार जाना, आभारी हूँ। मैं अस्वस्थ रहता है, भाख की विनाई काम नहीं करती, अत मैंने सब सस्थाओ से प्राय सम्बन्ध विच्छेद कर लिया है। ____ भाई तनसुखरायजी के सम्बन्ध में क्या लिखा जाए वे एक उत्साही, साहसी और कर्मठ कार्यकर्ता थे । परिषद् की उन्नति के लिए उनमे बडी लगन थी, वे सेवाभावी कार्यकर्ता थे। महगांव काड मे भी वे प्रमुख कार्यकर्ता थे। विरोधी परिस्थितियो मै भी साहस और चतुराई के साथ परिषद् के शानदार अधिवेशनो को सफलता के साथ कराने में उनका अधिक सहयोग रहा है। कई अधिवेशनो मे विरोधी दल से प्रेम के साथ टक्कर लेने में वे पीछे नही हटे । अपनी सहनशीलता और गभीरता तथा दूरदर्शिता के कारण उन्होने जटिल से जटिल परिस्थिति को सभाला और परिषद् के अधिवेशनो को सफल बनाया। सच्चे देशभक्त बहुश्रुत विद्वान् श्री वासुदेवशरण अग्रवाल मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि श्री तनसुखराय जैन की स्मृति मे एक प्रय प्रकाशित किया जा रहा है। मैं जब नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में अध्यक्ष का कार्य कर रहा था तब श्री तनसुखरायजी से मेरा परिचय हुआ । मैं उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ । उनके हृदय मे समाज-सेवा का बहुत अधिक उत्साह था। उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी। वे जहा कही प्रभाव और दुःख देखते, उसके निवारण के लिए प्रयत्नशील हो उठते । मुझे आज तक स्मरण है कि किस प्रकार उन्होने अग्रवाल जाति के उत्थान सम्बन्धी आन्दोलन के अनेक सूत्रो को अपने व्यक्तित्व में समेट लिया था। उनका स्वप्न था कि अनजाति के प्राचीन स्थान अग्रोहा का पुनरुद्धार करे। इसके लिए उन्होने अग्रोहा मे अखिल भारतीय अग्रोहा सम्मेलन का वार्षिक अधिवेशन किया और उसमे देश के अनेक नेतामो को दूर-दूर से एकत्र किया । उन्ही की प्रेरणा से मैंने उस सम्मेलन का सभापतित्व स्वीकार किया और अग्रोहे की यात्रा की । अग्नोहे का पुनरुद्धार श्री तनसुखरायजी का सच्चा कीति-स्तम्भ होगा। उनकी दृष्टि मे देश-सेवा पौर समाज-सेवा परस्पर विरोधिनी थी। एक सच्चे जैन, सच्चे अग्रवाल और सच्चे देशसेवक और मानवता प्रेमी व्यक्ति का स्मरण अवश्य ही सबके लिए कल्याणप्रद होगा। उनके स्मृति-पथ का यही सन्देश-सूत्र है। ५४]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy