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________________ अपना जमाना श्राप बनाते हैं प्रहले - दिल श्री देवेन्द्र कुमार जैन मैनेजर दि० जैन कालिज ( बड़ौत ) मेरठ जैन समाचार-पत्रो द्वारा तथा प्रकाशित विज्ञप्ति से यह जानकर हर्प हुआ कि ला० तनसुखरायजी के सम्बन्ध मे जैन समाज को शोर से महान् स्मृति-प्रथ प्रकाशित किया जा रहा है । मेरे तथा लालाजी के सम्बन्ध अति निकट के रहे है । अतः उनके विषय मे अधिक कुछ लिखू, यह शोभनीय नही ? तिस पर भी लालाजी वास्तव मे एक कर्मठ, निडर तथा अडिग समाज सेवी हुए है । मैंने जो देखा, सुना उस पर प्रकाश डालता हू । लालाजी का नाम जैनसमाज का बच्चा-बच्चा जानता है। वे समाज मे एक चमत्कृत सितारे की भाँति आए और समाज को एक रोशनी देकर चले गए। लालाजी ने एक साधारण परिस्थिति से उठकर अपने ज्ञानवल, - बाहुबल तथा अपनी व्यवहार कुशलता के कारण विशेष उन्नति की। वे धुन के पक्के, कर्मशीलप्राणी तथा जीवट के पुरुष थे। देश मे गाँधी युग प्राया । महान् परिवर्तन के साथ देश का काया कल्प हुआ | नव-निर्माण हुआ । ऐसे क्राति-काल मे जैन समाज मे भी चेतना आई | लाला तनसुखराय सरीखे महानुभावो ने जहा काग्रेस पार्टी को पूर्ण सहयोग प्रदान किया, वहा वे इस क्रांति-काल मे अपने समाज को भी न भूले । वे समाज के सामने नवीन, किन्तु सामयिक - प्रस्ताव लेकर आए । वे अकेले ही चले थे जानिवे-मजिल मगर - लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया । उन्होने अ० भा० दि० जैन परिपद् का झडा उठाया । परिषद् के प्लेटफार्म पर अपने विचार के लोगो को एकत्रित किया और एक जाग्रति समाज में पैदा कर दी। उन्होने विधवाविवाह का चलन, दस्सा पूजा अधिकार, मरण-भोज कुप्रथा का निषेव, विवाह-शादियों मे बहार की फिजूलखर्ची का वन्द होना तथा धार्मिक क्षेत्रो मे शिक्षा का प्रचार, छात्रवृत्तियों को देन, धार्मिक ट्रैक्टस् छापना तथा पुस्तिकात्रो का वितरण आदि उत्तम कार्य किए हैं । भारत भर में ख्याति प्राप्त दि० जैन पोलिटेक्निक इन्स्टीट्यूट बड़ौत की बाधारशिला की स्थापना उन्ही के वरद्-हस्तो द्वारा हुई । पोलिटेक्निक इन्स्टीट्यूट वह पौधा है जिसे लालाजी ने रोपा था | आधुनिक युग को इस ऐसी सस्था की कितनी श्रावश्यकता है। यहाँ से प्रति वर्ष अनेक जैन तथा जैनेतर प्रशिक्षार्थी उद्योग घघो में प्रवीण होकर अपने भरण-पोषण के लिए आत्म-निर्भर होते है । देश की सेवा करते हैं। असल मे दि० जैन पोलिटेक्निक बढ़ोत को उपादेयता के साथ लाला तनसुखराय का नाम सव अमर रहेगा। इस नश्वर ससार मे कोई मदा तो रहा नही - तिस पर भी कुछ लोग होते है जो कभी-कभी होते हैं। लालाजी के निधन से समाज को भारी क्षति पहुची । जाहिरा दुनिया जिसे महसूस कर सकती नही -- आ गई हममें कुछ ऐसी कमी, उनके वगैर । भगवान् उनकी श्रात्मा को सद्गति दें, शान्ति दें, और हमारी पीढ़ी के लोग उनके उपयोगी पथ के राही बनें। उनकी स्मृति मे निकलने वाले ग्रंथ की मै सराहना करता हूँ । [ ५५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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