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________________ वे धन्य हैं श्री जियालाल जैन प्रेसीडेन्ट दि० जन कालिन सोसायटी, बड़ौत (मेरठ) यही जीने का मकसद था, यही थी आरजू उनकी । कि गर निकले तो, मुल्को-कौम की खिदमत में दम निकले ॥ उपरोक्त शब्द अक्षरश. ला. तनसुखराय जैन के सम्बन्ध मे घटित होते है। उन्होंने अपने जीवन को मुल्क और कीम की खिदमत मे लगाया। लालाजी ने रोहतक से पजाव प्रात की काग्रेस पार्टी में बड़ा पार्ट अदा किया। वे निडर, निर्भीक बनकर मैदान में पाये । राष्ट्र की स्वतन्त्रता की खातिर वे कागवास भी जाने से न घबराये । जनता ने उन्हे पूर्ण सम्मान की दृष्टि से देखा । राष्ट्रीय-काग्रेस मे वे ऊचे से ऊचे पदो पर आसीन हुए। देश की आजादी के साथ-साथ लालाजी ने जैन समाज की महान् सेवा की है। धर्म के प्रचार-प्रसार मे उन्होने जी-जान की वाजी लगायी। वे दि. जन परिषद् के प्रधान तथा प्रधान-मत्री पद पर उम्र भर सुशोभित रहे । वे दि० जैन परिषद् के महारथी थे, जिसके द्वारा उन्होने बडे-बडे सम्मेलन बुलाए। इन सम्मेलनो से समाज में नवीन जागृति का अनूठा स्रोत उद्भूत हुआ। समयानुकूल नवीन तथा आवश्यक परिवर्तनो की मोर उनका ध्यान सतत् रहा। उन्होने हस्तनागपुरजी आदि तीर्थस्थानो पर विशाल जैन-सम्मेलन बुलाये, जिनमे अनेक सामयिक एव परम उपयोगी प्रस्ताव समाज के सामने पाये, जिनमे से विशेपकर-१ स्त्री-पूजा-प्रक्षाल, २ मरण-भोज कुप्रथा का निपेध, ३. दस्सा पूजाधिकार, मे वढार-वन्दी, ५. दहेज-दिखावा बन्द । उन्होने मीणा-जाति को भी जन-धर्म में दीक्षित कर लेने का प्रस्ताव समाज के सामने रखा था। दिगम्वर, श्वेताम्वर तथा स्थानकवासी साम्प्रदायिकता को भी वे जैन समाज तथा जैन धर्म के विकास मे हानिकर समझते रहे। इन तीनो सम्प्रदायो के एकीकरण का प्रस्ताव भी उनका उपयोगी प्रस्ताव था। उन्होने महगांव-काण्ड तथा आबू-मदिर काण्ड को एक सेनानी की भाँति डटकर लडा । उसमे वे विजयी हुए। निस्सन्देह इससे समाज की प्रतिष्ठा मे महानता पाई। उन्होने दि. जैन इण्टर कालेज, बड़ोत की आधारशिला का शिलान्यास किया। बहुत सारे छात्र प्रति वर्ष इस सस्था से प्रशिक्षण प्राप्त करते है । ऐसी उपयोगी सस्थाओ की समाज तथा देश को महान् आवश्यकता है। मुझे याद है कि लालाजी ने जब भी हमे आवश्यकता पही तभी हमारे कालिज की सहायता की। इस अवसर पर मै उनकी सुयोग्य सह-पमिणी श्रीमती अशर्फीदेवीजी की उदारता की भी प्रशसा करूंगा। उन्होने अपने को अपने दिवगत पति के प्रति परम श्रद्धान्वित होने का एक प्रमाण सिद्ध कर दिया है। जहां लालाजी ने अपने कर-कमलो से बड़ौत जैन इन्टर कालेज की आधारशिला की स्थापना की थी-- ठीक, उसी के सामने वगल मै इन्होंने भी लालाजी के नाम को सदैव-सदैव अमर रखने के लिए एक विशाल कमरे का निर्माण कॉलिन मे करा दिया है । इसलिये.-"हम तो उन्हे माने कि भर दे सागरे हर खासो आम" वाली किंवदन्ती इन लोगो पर घटित होती है। इन्होने जीवन का लक्ष्य मात्र सेवा-भाव बनाकर रखा है। वास्तव में ऐसे लोगो का जीवन-काल भावी पीढ़ियो के लिए मार्ग-दर्शक बनकर रहता है । वे धन्य है । भगवान् महावीर स्वामी से प्रार्थना करता हूं कि लालाजी की आत्मा को शान्ति तथा उन्हे सद्गति प्रदान करें। [५३
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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