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________________ श्रापके परिश्रम और कार्यकुशलता के कारण इतना वृहत् रूप धारण कर गया था। इस बार तो राज्य की चेतावनी दे दी थी कि यदि उन्हें इसके लिए पूरी तैयारी आरम्भ कर दी अदालत में दे दिया जहाँ पूरी शक्ति से पकी गिरफ्तारी का भय हो चला था परन्तु ग्रापने राज्य से न्याय न मिला तो सत्याग्रह किया जाएगा। गई थी। इस मामले को अन्त मे राज्याविवारियो ने आप इसे डेढ वर्ष नकलटते रहे श्रीर जैन समाज के मस्तक को ऊंचा किया । समाज संगठन का व्रत १९ जनवरी सन् १९३६ ई० के महगाँव काण्ड दिवस ने आपकी समाज सगठन की भावना को और भी जागृत कर दिया और तन-मन-धन ने समाज सेवा में जुट गये । महगाँव काण्ड के कारण समय का प्रभाव होते हुए भी श्रापने जैन परिपद का सारा विवान नए रूप से बनाया और परिपद का कायाकल्प हो गया । मन् १९३७ मे परिपड का सालाना अधिवेशन आपके परिश्रम मे ही इतना सफल हुआ कि इसमें जैन समाज के १० हजार व्यक्तियों के प्रतिचिन महाराजा शेवा और कोसी नरेश भी पधारे थे | इस अवसर पर ममाज की कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रस्ताव पास हुआ । हजारो व्यक्तियों ने मरण-भोजन जैसी हानिकारक घृणित कुप्रथा को नष्ट करने, मान में परिषद के १०००० सदस्य बनाने की प्रतिज्ञा की। समाज के नैकड़ों नवयुवकों ने भिन्न-भिन्न भागो में परिषद की शाखाएं खोलने का व्रत किया । श्रीयुन लालाजी मई-जून की भयंकर गर्मी मे, यू०पी० सी० पी०, यादि प्रान्तों के दौरे पर निकल पड़े और समाज मे एक नवचेतना पैदा कर दी। आपके कार्य से श्र० भा० जैन परिपत्र के महामंत्री देशभक्त त्यागमृति श्री रत्नलालजी एम० एल० ए० इतने प्रभावित हुए कि ग्र० भा० जैन परिषद का सम्पूर्ण कार्य उन्होंने आपके ऊपर ही छोट दिया और अन्त मे बहुत समय तक श्र० मा० जैन परिपद का कार्यालय आपके पास ही रहा । जैन रथ-यात्रा पर पावन्दी सन् १९४० ई० में जब कि आप अखिल भारतीय जैन परिषद के मंत्री थे, दिल्ली के धिकारियो ने जैन रथ-यात्रा के जुलूस पर पावन्दी लगा दी थी । उस समय श्रापने पचानो जैन श्री जैनेत्तर अन्य समाए सरकार के इस अनुचित कार्य के विरोध में संगठित कराकर तथा ममय-समय पर वक्तव्यो द्वारा अपने समाज का रोप प्रकट करके सरकार की यह बतला दिया कि दिल्ली का जैन समाज की ओर आपका ध्यान आकर्पित किया। आपने सबको इस बात का आश्वासन दिया कि यदि श्रावश्यकता हुई तो वे सब व्यय अपने ऊपर लेने को तैयार हैं। परिषद का निमंत्रण देने के बाद वे सब कार्य छोडकर परिषद के कार्य पर जुट गये और एक सप्ताह में परिपद के मकड़ी सदस्य बनाये | आपकी इस मफलता को देखकर बहुत से सज्जन चकित रह गये और वे आप ही प्राप परिषद ने सम्मिलित होने लगे । अनिल भारतीय जैन परिपद दिल्ली प्रविवेशन के लिए स्वागतकारिणी के मन्त्री निर्वाचित हुए और आपके कठिन परिश्रम, प्रपूर्व ३२ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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