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________________ साहस तथा उत्साह से अ०भा० जैन परिपद का दिल्ली अधिवेशन इतना सफल हुमा और अपूर्व समारोह के साथ समाप्त हुआ कि यह अ. भा. जैन परिपद के इतिहास मे अमर रहेगा। इस अवसर पर आप पावन्दी के साथ जलूस निकालने को तैयार नहीं थे अन्त में स्थानीय अधिकारियो को झुकना पडा और दिल्ली मे जलयात्रा का शानदार जुलूस निकला । शायव भारतवर्ष में यह पहला जुलूस था जिसमे श्वेताम्बरी और दिगम्बरी आदि सभी सम्मिलित होकर जुलूस मे निकले और यह सब आपके प्रयत्लो का ही फल था। रथयात्रा पर लगाई गई पावन्दी को सफलतापूर्वक हटवाने के बाद जो निम्नाकित वक्तव्य लालाजी की ओर से प्रकाशित हुआ उससे इनकी निर्मीकता का भलीभांति ज्ञान होता "विविध जातियो में फूट डालकर अपना काम बनाने की जिस नीति से सरकार हमेशा काम लेती रही है, वही नीति स्थानीय सरकार ने जैनियो के जुलूसो पर पाबन्दी लगाकर हिन्दुनो में प्रयोग करनी चाही थी अर्थात् यदि जैनी पावन्दियो सहित अपने जुलूस निकाल लेते तो हिन्दुओं के जुलूसो पर भी उसी प्रकार पाबन्दी लगाई जा सकती थी और सरकार का उद्देश्य भी यही था। सरकार का इरादा यह था कि पहले एक छोटे समाज पर पाबन्दी लगाकर देख लिया जाय कि हिन्दू लोग उसे कैसा महसूस करते है। जैन समाज अपनी परीक्षा में सफल रहा है, क्योकि उन्होने पावन्दियो के साथ जुलूस निकालने में समस्त हिन्दू जाति का अपमान समझा और इसलिए विरोध प्रदर्शनार्थ अपने आठो मेलो को बन्द कर दिया और न कोई जुलूस ही निकाला । उसी का फल आज हम देख रहे है कि रामलीला के लाइसेन्स बिना किसी पाबन्दी के मिलेंगे। रामलीला के जुलूसो मे कोई पावन्दी न लगाकर सरकार ने बहुन बुद्धिमना प्रकट की है और सरकार को चाहिए कि वह जैनियो के मामले में अपनी गलती स्वीकार करे और उसके दिलो को जो दुःख पहुंचा है उसे शान्त करे। अन्त मे जैन समाज की ओर से सब सज्जनो और व्यक्तियो को जिन्होने कि इस मामले मे सहयोग दिया तथा इस अन्याय के प्रति सहानुभूति प्रकट की है, धन्यवाद देता हूँ।" श्री अग्रसेन जयन्ती का वृहत् आयोजन दिल्ली में पिछले कई वर्षों से अग्नसेन जयन्ती मनाई जाती रही थी। परन्तु बहुत समय तक अग्रवाल भाई दिल्ली के भिन्न-भिन्न मुहल्लो मे ही जयन्ती मना रहे थे। लाला तनसुखरायजी जैन ने जो कि इस समय तिलक वीमा कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे, ला. लक्ष्मीनारायणजी अग्रवाल व बालकृष्णजी एम० ए० की प्रेरणा से इस बात का बीडा उठाया कि दिल्ली के समस्त वैश्य भाई सगठित रूप में एक ही स्थान पर जयन्ती मनाये। इससे पूर्व दिल्ली के वैश्य भाई जयन्ती के अवसर पर जुलूस निकालने से हिचकिचाते थे। परन्तु आपने साहस और आत्मविश्वास से काम लेकर जुलूस का आयोजन किया जिसके [ ३३
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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