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________________ का स्थान भी आपके पडाल में ही रखा गया। इससे आपको वडी प्रसन्नता हुई। आपने परिषद् की मीटिंग के लिए हर प्रकार का समुचित प्रबन्ध कर दिया। परिषद में अनेको आवश्यक विषयो पर विचार होने के साथ ही आगामी अधिवेशन के स्थान का भी प्रश्न उपस्थित हुआ। कोई किसी स्थान का निर्णय होने में नहीं आ रहा था। उस समय ला० तनसुखरायजी ने विचार प्रगट किया कि यदि परिषद् का अधिवेशन दिल्ली में हो तो ठीक है। उस समय जैन समाज में परिपद् की ओर से कुछ भ्रम फैला हुआ था। कुछ लोगो ने इस प्रस्ताव का विरोध भी किया परन्तु परिषद की कार्यकारिणी ने लाला तनसुखरायजी से आग्रह किया कि वे दिल्ली जाकर परिस्थिति का अध्ययन करके पुन इस विषय मे लिखे। श्रीयुत लालाजी के चित्त पर हस्तनागपुर उत्सव का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा था और अनेको जाति-बन्धुओ के धनिष्ठ सम्पर्क मे आने के कारण उनकी समाज-सेवा की सुपुप्त भावना एक दम जाग उठी, और इसी भावना से आपने परिषद को दिल्ली के लिए निमन्त्रण भी दे दिया। कुछ साथियो ने इस कार्य को वहत कठिन बताया परन्तु आपने हस्तनागपुर से लौटते ही लोगो से मिलना-जुलना प्रारम्भ कर दिया और अपना विचार लोगो को बताया। फिर लाल मन्दिर मे एक मीटिंग बुलाई गई। प्रथम तो उपस्थिति ही बहुत कम थी। फिर बिना किसी निश्चय के ही यह अपूर्ण मीटिंग भी समाप्त हो गई। इससे आपको हार्दिक दुख हुमा । अगले दिन आपने अपने मकान पर ही कुछ मित्रो की एक बैठक बुलाई और उसमे जिला परिषद की स्थापना करके अखिल भारतीय जन परिपद का आगामी अधिवेशन दिल्ली रखने का निमत्रण दे दिया। एक मित्र ने आर्थिक कठिनाई का जिक्र किया तो इन्होने तत्काल अपनी स्वीकृति प्रदान की और कहा इस सम्बन्धी आने वाली कठिनाइयो का मै स्वय सामना कर लूगा। आप सब परिषद के कार्य को बढाइये। यह वात सुनकर सर्वसम्मति से आप जैन परिषद के मन्त्री चुने गये। महगांव काड का सफल संचालन अ. भा. जैन परिषद् के दिल्ली अधिवेशन को समाप्त हुए पूरा १ मास भी न बीता था कि जैन समाज में महगाँव काड का प्रवल आन्दोलन छिड़ गया। यहां कुछ अत्याचारियो ने मन्दिर की मूर्तियो को चुरा लिया और मन्दिर को अपवित्र कर दिया। इससे श्रीयुत लालाजी के हृदय को बड़ी ठेस पहुंची। आपने आठ दिन मै ही इस आन्दोलन को अखिल भारतीय रूप दे दिया तथा १६ जनवरी, सन् १९३६ को सम्पूर्ण भारत मे महगांव काण्ड दिवस मनाने की अपनी कार्यदक्षता और प्रवन्ध से इस दिवस को इतनी सफलता से मनाया गया कि लगभग सम्पूर्ण भारत मे हडताल मनाई गई तथा सभाएं हुई। इस दिवस की सफलता का यह प्रत्यक्ष प्रमाण है कि एक दिन मे ग्वालियर राज्य के पॉलिटिकल विभाग मे हजारो तार पहुंचे थे तथा प्रनेको स्वीकृत प्रस्ताव-पत्रो का ढेर लग गया था। यह दिवस दिल्ली मे तो इतनी सफलता के साथ मनाया गया कि जैन-इतिहास में इसका एक विशेष स्थान रहेगा और यह इस कारण और भी कि पहली बार ही दिगम्बरी, श्वेताम्बरी, स्थानकवासी आदि सब प्रकार के जैनियो ने एक मच से सम्मिलित होकर इस दिवस को मनाया। आपको इस काण्ड की जांच के लिए कई बार ग्वालियर राज्य जाना पड़ा और राज्याधिकारियो से मिल कर अपना दृष्टिकोण रखकर न्याय की प्रार्थना की। यह आन्दोलन
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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