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________________ सन् १९३९ ई० मे एक नया बीमा कानून बना जिसके अनुसार एक व्यक्ति तीन साल तक ही किसी बीमा कम्पनी का मैनेजिंग डायरेक्टर रह सकता था । लालाजी की यह अवधि सन् १९४२ ई० में समाप्त होती थी । अत थापने लक्ष्मी बीमा कम्पनी से त्याग-पत्र दे दिया । तिलक बीमा कम्पनी की स्थापना जिन लोगो का तिलक से सम्बन्ध रहा है और वैसे भी सारा समाज जानता है कि तिलक ने क्या-क्या किया । जहाँ दसो और वीसो वर्षों की खडी हुई कम्पनियो के नाम तक लोग नही जानते, वहाँ दो वर्ष मे ही तिलक का नाम बच्चे-बच्चे की जबान पर हो गया था । नये बीमा कानून की चोट मे जहाँ नई कम्पनियो का अस्तित्व खतरे में पड गया था और बहुतेरी कम्पनियाँ किश्त न देने की दशा में सरकार द्वारा बन्द कर दी गई थी । तिलक ने समय से पहले ही अपनी जमानत की रकम पूरी कर दी थी । आज भी जब विकट परिस्थितियो मे सभी वैकिंग संस्थानो पर सकट के बादल मंडरा रहे है और अधिकाश सस्थाएं बंद हो गई है तिलक सीना निकाल अडिग खडी हुई है। इस सब का श्रेय केवल इसी एक महान व्यक्ति लाला तनसुखराय जैन को है। तात्पर्य यह है सफलता लाला तनसुखराय जैन के पीछे-पीछे दोडती है, और व्यापारी जगत् में यह निश्चित समझा जाता कि ला० तनसुखराय के साथ सफलता की गारटी रही । आम तौर पर यह देखा गया है कि जो व्यक्ति व्यापार में सफलता प्राप्त करता है वह सार्वजनिक क्षेत्र से दूर रहता है। लाला तनसुखराय जैन इसके अपवाद रहे है । आप न केवल काग्रेस के प्रसिद्ध कार्यकर्ता ही रहे बल्कि सामाजिक क्षेत्र मे भी नाम बहुत ऊँचा पाया । जैन समाज मे तो लाला तनसुखराय जैसे कार्यकर्ता उंगलियों पर गिनने लायक हैं । धार्मिक क्षेत्र में प्रवेश सन् १९३५ ई० में देश मे शान्ति स्थापित हुई । काग्रेस का कार्यक्रम सरकार के साथ सहयोग रूप मे चल पडा, प्रत इस ओर से श्री लालाजी का कार्यभार हलका हो गया था । श्रीयुत लालाजी की माताजी की यह हार्दिक इच्छा थी कि आपको धार्मिक क्षेत्र मे प्रविष्ट किया जाए परन्तु जो देश के आन्दोलन की घोर भाकपित हो चुका हो उसके लिए जातियां, धर्म के बघन तुच्छ दीख पडते है। फिर भी धार्मिक वृत्ति श्री लालाजी की पैतृक सम्पत्ति रही है। इस घोर भी प्रापकी अभिरुचि शीघ्र ही जागृत हो उठी सन् १९३५ ई० में श्राप पूज्य माताजी के प्राग्रह पर भाप हस्तनागपुर के उत्सव पर गये । धार्मिक क्षेत्र की ओर आपका यह प्रथम रुझान था । अपनी सूझ से आपने हस्तनागपुर ६०, ७० व्यक्तियो के ठहरने योग्य कैम्प बनाया और उसका प्रबन्ध बडी कुशलता के साथ किया। इस अवसर पर अखिल भारतीय जैन परिषद् की कार्यकारिणी की बैठक हस्तनागपुर में रखी गई थी। सौभाग्य से परिषद की मीटिंग । ३० ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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