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________________ असहयोग आन्दोलन के समय सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने का और व्यापारिक सस्था (भारत इन्श्योरेंस क०) में प्रविष्ट होने का मुख्य उद्देश्य यही था कि मुझे अपने आगामी जीवन मे स्वतत्रतापूर्वक काग्रेस के साथ देशसेवा के कार्य को पूर्णरूपेण क्रियात्मक रूप देने के लिए पर्याप्त क्षेत्र और स्वतत्रता मिलेगी। इससे भी अधिक वह विचार जिसने मुझे और भी लक्ष्मी बीमा कम्पनी की ओर आकर्षित किया वह यह था कि यह कम्पनी काग्रेस के गणमान्य नेता ला. लाजपतरायजी तथा प० मोतीलाल नेहरू द्वारा सस्थापित हुई थी जिसका सुचारू प्रबन्ध पं० के० सन्तानम के हाथ में है जिन्होने कि असहयोग आन्दोलन के समय अमूल्य सेवाए और त्याग अर्पित किया था अवश्य ही अपने कार्यकर्तामो को वह स्वतत्रता प्रदान करेगी कि वह काग्रेस के साथ मिलकर कार्य कर सकेगी। साथ ही हर प्रकार से उन्हे सहायता देगी। भारत कम्पनी को छोड़कर अपनी कम्पनी मे पाने में मुझे अत्यधिक हानि हुई थी किन्तु अब मै अनुभव कर रहा हूँ कि मैने अपनी भावनाओं के प्रति न्याय नहीं किया क्योकि अब मै स्पष्ट देख रहा हूँ कि लक्ष्मी कम्पनी अब वह नही रही है जो कि कुछ समय पूर्व थी और जो लक्ष्य इसके सहायको ने उद्घोषित किया था। कम्पनी के प्रवन्धको का यह निश्चय कम्पनी की इच्छा प्रगट करता है और इसके ऊपर यह प्रतिबन्ध कि वे सामाजिक और देश की राष्ट्र-निर्माण व्यवस्था मे भाग न ले सकेंगे मुझे इससे भाष होता है कि अब वह समय दूर नहीं है जबकि जो प्रतिबन्ध गवर्नमेंट ने अपने कार्यकर्ताओ पर लगाये है यह कम्पनी भी उनसे पीछे न रहेगी। आपके बोर्ड का यह निर्णय सीधा उस चेतावनी का द्योतक है कि मेरी राष्ट्रीय भावनामो की अभिव्यक्ति के लिए यहा पर कोई स्थान नहीं और इस प्रकार आपकी कम्पनी में मेरे आने का ध्येय अस्त-व्यस्त हो जाता है, अत मुझे खेद है कि मैं आपके इस निर्णय से सहमत नहीं है । और न मैं इस प्रतिबन्ध से अपने आपको भविष्य के लिए वाषित करता है । मैं, इसीलिए अपना त्याग-पत्र दे रहा है। इसे मेरा एक माह का नोटिस समझा जाएगा। मुझे आशा है कि मैंने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है और मेरा त्याग-पत्र तुरन्त स्वीकार किया जाए। उत्तर की प्रतीक्षा मे। भवदीय, तनसुखराय जैन सन् १९३६ ई. के अक्तूबर मास में लक्ष्मी बीमा कम्पनी से त्याग-पत्र देने के उपरान्त ला० तनसुखरायजी ने तिलक बीमा कम्पनी की स्थापना की और उसके मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त हुए। सन् १९४२ ई. तक तिलक वीमा कम्पनी को छोडने से पूर्व ही उन्नति पथ पर अग्रसर कर दिया और यह भारतवर्ष की उच्चकोटि की कम्पनी बन गई। तिलक वीमा कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर रहते हुए भी लालाजी ने कम्पनी की उन्नति के लिये अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को एक ओर रखकर इसकी उन्नति के लिए अपने पास से हजारो रुपये लगाकर कम्पनी के धन की रक्षा की थी। यदि लालाजी कुछ समय और भी इस कम्पनी की सेवा कर सकते तो तिलक बीमा कम्पनी के लिये सौभाग्य की बात होती परन्तु [ २६
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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