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________________ अग्रसेन जयन्ती महोत्सव रायजादा गूजरमलजी मोदी लालाजी की सेवा की प्रवृत्ति जैन समाज तक ही सीमित नही रही, उन्होने विभिन्न क्षेत्रो मे प्रवेश करके अपनी श्रात्मिक भावना को अधिक उज्ज्वल बनाया । १९४९ मे देहली मे महाराजा अग्रसेन जयन्ती का सफल आयोजन करके एक ऐसा इलाघनीय कार्य किया जिसकी याद सदैव बनी रहेगी । देहली के वैश्य भाई जयती के अवसर पर जलूस निकालने मे हिचकिचाते | परंतु आपने साहस और मात्म-विश्वास से काम लेकर जलूस की प्रायोजना की जिसके फलस्वरूप ऐसा जुलूस निकला जो देहली के वैश्य भाइयो के इतिहास में श्रद्वितीय मिसाल रहेगी । आपने अग्रसेन जयन्ती में पास हुए प्रस्तावो को कार्य रूप में परिणत किया और नगरोहे से खुदाई कर जो सामग्री प्राप्त की वह अग्रवाल जाति के इतिहास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है । दीवान हाल मे श्री महाराज अग्रसेन का जयन्ती समारोह उत्तर भारत के प्रसिद्ध मिलमालिक रायजादा सेठ गुजरमल जी मोदी (बेगमाबाद) के सभापतित्व मे अग्रवाल वैश्य समाज के जातीय उत्सव के रूप मे मनाया गया। सभा की कार्यवाही सभापतिजी के स्वागत तथा मगलगान से प्रारम्भ हुई । हाल खचाखच भरा हुआ था । देवियां भी एक अच्छी सख्या मे उपस्थित थी । प्राय आधा दर्जन देहली की वैश्य सरथाओ द्वारा सभापतिजी को मानपत्र दिए गए, जिनका उत्तर देते हुए सभापतिजी ने अग्रवाल जाति की वर्तमान अवस्था का दिग्दर्शन कराते हुए एक सुन्दर भाषण दिया । प० रामचन्द्रजी देहलवी ने सार्वभौमिक उद्देश्यो और अग्रवाल जाति से उनके सम्बन्ध की चर्चा करते हुए बहुत ही सुन्दर और महत्वपूर्ण भाषण दिया । अग्रवाल-कुल- प्रवर्तक महाराज अग्रसेनजी के जीवन के इतिहास की आवश्यकता को बतलाते हुए श्री तनसुखरायजी जैन ने कहा कि अगरोहा श्री अग्रसेनजी महाराज के विशाल राज्य की राजधानी थी । प्रत्येक प्राणी उनके राज्य मे सुखी था। अगरोहा उस समय स्वर्गस्थान समझा जाता था । उस समय आपस मे इतना प्रेम था कि कोई भाई अपने श्रापको गरीब नही समझता था । हरियाना प्रात मे दूध की नदियाँ बहती थी। किसी समाज या देश का इतिहास उसकी पीठ की रीढ की हड्डी है । जिस समाज का साहित्य अधिक विकसित और विशाल होगा, वह समाज उतना ही उन्नत होगा । किन्तु श्रग्रवाल-कुल- प्रवर्तक महाराज अग्रसेनजी के जीवन का इस समय तक कोई पूर्ण इतिहास नही बन सका है। इसका मुख्य कारण यह है कि अगरोहे के खण्डहरो मे जो सामग्री भरी पडी है, उसकी अभी तक छानवीन नही हुई है । जिस जाति के शूरवीरो का इतिहास प्रकाश मे नही प्राता, उस जाति के नवयुवक शूरवीर नही हो सकते । जो लोग यह कहते हैं कि अग्रवाल बनिये है, कायर है, इनका तो पेशा सिर्फ दुकानदारी है, वह बहादुर नही हो सकते, उनको बताने के लिए आवश्यक है कि श्री अग्रसेनजी महाराज की एक मपूर्ण जीवनी प्रकाशित हो, ताकि उस जीवनी के पढ़ने से हमारे नौजवानो के खून मे जोश आए और २६० ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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