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________________ दिल मे इच्छा हो कि हम भी शूरवीर वने । श्री यमेनजी महाराज की जीवनी प्रकाश में लाने के लिए सबसे पहले हमे अगरोहे की खुदाई का कार्य अपने हाथो मे लेना चाहिए । वहाँ की चुदाई से हमे उनकी जीवनी के लिए बहुत कुछ मसाला मिल सकता है । इसके लिए उत्साही कार्यकर्तामो की जरूरत है, जो इस कार्य को पूरा करने की प्रतिज्ञा लें। जब इतिहास पूर्ण हो जावे तव उसके सस्ते सस्करण छपवाये जावे, जिसमे प्रत्येक भाई उनके जीवन का हाल पढ़ सके। जो अग्रवाल जाति मे विद्वान है, उनसे मेरी प्रार्थना है कि वे इस कार्य को सफल बनावें । दानी महानुभावों को चाहिए कि वह इस कार्य के लिए दिल खोलकर दान दें। मुझे आशा है कि बहुत गीघ्र ही कार्य प्रारभ हो जाएगा और प्रत्येक अग्रवाल भाई इसमे सहयोग देगा। ___ उत्सव की शान में चार चांद लगाने वाले श्री जगन्नाथजी गुप्त के व्यायाम के खेली को और विशेपकर छाती पर पत्थर तुडवाने को उपस्थित लोगो ने बहुत सराहा । सभा मे चार महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुए, जिनका तात्पर्य निम्न है - १-देहली नगर मे एक विशाल वैश्य भवन की स्थापना हो, जिसमें वैश्य वालको को औद्योगिक शिक्षा देने, शारीरिक उन्नति करने तथा वैश्य भाडयो के ठहरने का उत्तम प्रबन्ध होगा। इसके अतिरिक्त इस भवन के निर्माण का मुख्य उद्देश्य अप्रवाल जाति की आवाज को अपने प्लेटस फार्म द्वारा फैलाना होगा। २-अगरोहा का, जो अग्नवाल जाति का कौनिनगर था, पुननिर्माण करना । वहाँ महाराज अपमेन का एक स्मारक वनवाना तथा अग्रवाल वस्ती को वसाना है । ३-भारत सरकार से यह प्रार्थना की गई कि वह महाराज अग्रसेन के जन्म दिवस की प्रमाणित छुट्टी घोपित करे। ४-भारत सरकार से यह भी प्रार्थना की गई है कि वह वैश्य समाज के युवको को फौज व पुलिस आदि मे उचित स्थान दे। सभा मे भवन निर्माण के लिए जो अपील की गई, उसका वडा सुन्दर प्रभाव पडा तथा एक अच्छी राशि में रुपया देने व भवन के कमरे आदि वनवाने के वायदे हुए। मभा रात्रि के ११ बजे समाप्त हुई। रायजादा सेठ गूजरमलजी मोदी को देहली के प्रमुख वैश्य नागरिको की ओर से एक प्रीतिभोज भी दिया गया, जिसने नगर के गण गान्य व्यक्ति उपस्थित थे। मभा मै लाला विश्नस्वरूप कोल मर्चेण्ट, १० मक्खनलाल जैन, लाला अानन्दप्रिय, वैरिस्टर श्रीरामजी आदि के भाषण युवको | तुम पुन धधक उठो, जो तुम्हारे उन्नति मार्ग में निरोधक होगा वही जलेगा, कारण कि तुम भन्द कोयले की भांति हो और समय पर खूब भमक सक्ते हो। बच्चो | तुम अव विलासिता का त्याग करके कुर्बानी करना सीखो और अपना सर्वस्व समाज के उत्थान में लगा दो। तुम्हारे दस बेटे हो ये फले-फूले और समाज के काम पावें। [ २६१
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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