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________________ राजस्थानी भाइयों की अपूर्व सेवा सम्पादक विश्वमित्र आप जैन समाज तथा वैश्य परस्पर सहायक सभा के सुविख्यात नेता है। कलकत्ता तथा रगून आदि से मारवाड़ तथा राजपूताना की ओर जाने वाले यात्रियो की सेवा में बहुत प्रयत्नशील है । इस बारे मे आप रेलवे के उच्च अधिकारियो से भी मिल चुके है जिसके फलस्वरूप यात्रियो के लिए बहुत सी सुविधाएं प्राप्त हो गई हैं। रेलवे के स्थानीय अधिकारी श्री मदनलालजी, स्टेशन मास्टर, श्री गौरीरामजी गार्ड, तथा श्री मगलसैन जी, टी. ऐन. ऐल रिवाड़ी ने, जो सहायता तथा सेवाएं प्रदान की है, वे प्रशसनीय है। बीकानेर राज्य ने भी यात्रियो की सुविधार्थ अपने यहा से श्री विरधीचन्दजी नाजिम, श्री शिवकृष्णजी पेशकार, श्री जगन्नाथ जी गिरदावर, तथा श्री सूरजमल जी संक्रेटरी सरदारशहर को यहां भेजा हुआ है, जिनके सहयोग से यात्रियो को बड़ा लाभ हो रहा है । लाला तनसुखराय जैन, डाक्टर हरस्वरूप जी, मा० लक्ष्मीनारायणजी, श्री महावीरप्रसादजी जैन, आई ए आदि उत्साही कार्य-कायो के साथ तथा तिलक बीमा कम्पनी के स्टाफ के साथ प्रतिदिन स्टेशन पर अपना बहुत सा समय देकर यात्रियो की सब प्रकार की सुविधामो का पूरा-पूरा ध्यान रख रहे हैं । कलकत्ता व रगून आदि से जो लोग युद्ध के भय से भा रहे है, उनमें से अधिकतर लोग राजपूताना तथा मारवाड की ओर जा रहे हैं, इसी कारण वीकानेर राज्य अपने यहा आने वाले यात्रियो की सुविधाओ के लिए बहुत प्रयत्नशील है । ता० २७ दिसम्बर की शाम को बीकानेर के प्रधान मंत्री राजा मानधातासिंह जी स्वय देहली स्टेशन पर पधारे और वहा पर यात्रियो की सेवा में तत्पर लाला ननसुखराय जैन, सेठ बेनीप्रसाद जी, मास्टर लक्ष्मीनारायण, डाक्टर हरस्वरुप आदि उत्साही कार्यकर्ताओ से भेट की और बड़ी देर तक समस्त प्रबन्ध का निरीक्षण तथा वार्तालाप करते रहे । यहां के कार्य को बहुत प्रशसा की। उन्होंने यह भी पूर्ण विश्वास दिलाया कि बीकानेर राज्य समस्त यात्रियो की सुविधामो का पूरा ध्यान रख रहा है। इन यात्रियो के किसी भी सामान पर कोई नवीन या अधिक चु गी नही लगाई गई है। जिन ग्रामो मे वे लोग ठहर रहे है, वहां पर रक्षार्थ सैनिको का विशेप प्रवन्ध कर दिया गया है, ताकि लूट-मार प्रादि को मभावना न रहे। प्रधान मत्री महोदय ने यह भी बताया कि आगे का दौरा समाप्त करके वह २ जनवरी को फिर देहली पधारेंगे । यदि बीच में यात्रियों की किसी ऐसी कठिनाइयो का पता चले, जिनको राज्य दूर सके तो वह उस समय उन्हे वता दी जाय । उन्हें दूर करने का पूरा प्रयल करेंगे। x x x x श्रद्धा और तर्क, जीवन के दो पहलू है। जीवन मे दोनो की अपेक्षा है । व्यावहारिक जीवन मे भी न केवल श्रद्धा काम देती है और न केवल तर्क। दोनो का समन्वित रूप ही जीवन को समुन्नत बनाने में सहायक होता है। अत तर्क के साथ श्रद्धा की भूमिका होनी चाहिए और श्रद्धा भी तर्क की कसौटी पर कसी होनी चाहिए । [२५६
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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