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________________ महगांव आन्दोलन श्री श्यामलाल पांडवीय मुरार, ग्वालियर जिस महगाव काड ने सारे जैन समाज को झकझोर दिया था और जिसके विरोध में सारे समाज ने अपने भेदभाव भूलकर संगठित होने का परिचय दिया था, वह महगाव काड क्या है और उसमें स्वर्गीय लाला तनसुखराय का कितना और क्या योगदान रहा है ? उसकी जानकारी दिये अपने बिना उनका स्मृति ग्रथ अधूरा ही रहेगा यह घटना सन् १९३५ की है । पुराने ग्वालियर राज्य मे महगाव एक छोटा सा नगर है, वहा पर थोड़े से घर जैनियो के है और एक जैन मन्दिर है। वहा पर कुछ सम्प्रदायवादी हिन्दू तथा जैन धर्मद्वेषियो को जैन मन्दिर का होना बहुत खटकता था । अतः वे सदा धार्मिक विद्वेष के कारण उनके धर्म-पालन में सदा अडचने डालते रहते थे। उनका विरोध करके हर प्रकार से उनको तग किया जाता था। सन् १९३५ मे यहा पर तहसील का मुकाम होने के कारण कुछ सम्प्रदायवादी अधिकारियो द्वारा उनको समर्थन मिल जाने के कारण उनके जनविद्वेष को और बल मिलने लगा। स्वर्गीय महाराज माधवराव की जयन्ती राज्य भर में मनाई जाती थी। जैनियो से हमेशा सबसे अधिक चन्दा लिया जाता था, जिसको वे दे दिया करते थे और कभी उनको इसकी कोई शिकायत नहीं रही। इस हालत मे भी जबकि उनसे सख्ती से ज्यादा चन्दा वसूल कर लिया जाता था । __सन् १९३५ की माधव जयन्ती पर जो २ नवम्बर को होनी थी, इस अवसर पर किये जाने वाले रडी के नाच के लिए जैनियो ने चन्दा देने से इन्कार कर दिया। इस पर साम्प्रदायिक अधिकारी भी कूद गये। जैनधर्म द्वेषियो ने जो पहले से धर्मद्वेप रखते थे, अधिकारियो को उकसाने और भडकाने लगे। सयोग से तहसीलदार और जुडीशियल आफिसर उस दिन महगाव नहीं थे। नायब तहसीलदार इचार्ज था। नायब तहसीलदार और थानेदार ने माधव जयन्ती मनाने के लिये स्वर्गीय महाराजा का चित्र बैठाकर निकालने के लिये मन्दिर का विमान, समोशरण और सिंहासन जिसका उपयोग केवल जिनेन्द्र भगवान के लिये ही किया जाता है उन सबको मागा। जैनियो ने अपने धार्मिक विश्वास के अनुसार कि भगवान की ये वस्तुये किसी व्यवितगत उपयोग के लिये नहीं लाई जा सकती, देने से अपनी असमर्थता प्रकट की। इस पर जैनियो को बहुत बुराभला कहा और बुरी-बुरी गालिया दी। यह भी धमकी दी कि देख लेगे तुम्हारे मन्दिर और समाज को, उसकी जरूरत ही नहीं रक्खेगे । उस साल माधव जयन्ती का जुलूस सदा की भांति जैनियो के चबूतरे पर भी नहीं ठहरा । नी लोग, जब चबूतरे पर जब जुलूस ठहरता था तो स्वर्गीय महाराजा के चित्र की प्रारती तथा इत्रपान क्यिा करते थे। इस घटना पर जैनो का जो अपमान किया गया था उस समय यह किसी ने नहीं सोचा था कि जैन मन्दिर (धर्मस्थान) को भी अपमानित और भ्रप्ट किया जायगा। २४४ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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