SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरी आयु में कमती पड़े रोज पल छिन की तेरी आयु मे कमती पडे, रोज पल दिन को, रोज पल छिन की। करना सो करले आज खवर नहीं कल की। तून गर्भ मास मे निश दिन कप्ट सहे था । ऊपर को पैर नीचे तेरा शीश रहे था । तेरे आस-पास मल और मूत्र बहे था। पडा घोर नरक मे तू राम ही राम कहे था ।। मै सदा करूगा भजन विपत कर हल की। तेरी आयु मे कमती पडे रोज पल छिन को ।। फिर घरती मे आये छूटा उस दुख है। धुट्टी और दूधी लगा पौवने मुख से ॥ सठ मोहे नीद मे भूल फूल गया सुख मे। नोति विमुख हुए कर रहा राम के दुख से। हुई खेल-कूद मे वाल अवस्था हलकी । तेरी आयु मे कमती पडे रोज पस छिन को। फिर तरुन अवस्था हुई, वीरेतन जागी । और मोह में प्रधा हा नार अनुरागी॥ नही बोये दिल के दाग बना ना वेदागी। सब कोल वैन गया भूल हुए नर भागी।। तेने रतन जवानी खोई वरावर खल की। तेरी मायु में कमती पडे रोज पल छिन की। फिर तरुन अवस्या गई वुढापा माया । सब इन्द्री निवल हुई नुकड गई काया। फिर सुत दारा मजा वाहिर विडवाया ॥ कहे शीशराम मल मल के हाय पद्धताया। जब मरन लगा तब सुमरनी छलकी । तेरी आयु मे कमती पडे रोज पल छिन को ।। * * * * [ २४३
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy