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________________ जयन्ती उत्सव के दूसरे दिन ( ३ नवम्बर १९३५ ) की रात को किसी समय जैन मंदिर मे घुसकर सबकी सब २७ मूर्तिया वहा से उठा ली गई जिनमे कई मूर्तिया वजन मे बहुत भारी थी । जैन शास्त्र जलाये गये और मन्दिर के भीतर पाखाना - पेशाब करके धर्मस्थान को अपवित्र किया गया । कीमती माल चादी की छडिया प्रादि कोई नही उठाई, सब पड़ा छोड गये । कीमती कपडे न ले गये और न जलाये गये । जलाये तो केवल धर्मग्रथ ही जलाये । यह सब सुनियोजित धर्म का अपमान और धर्मस्थान भ्रप्ट करने का पडयन्त्र था जिसकी पुष्टि इससे भी होती है कि बिल्कुल तडके ही उन धर्मद्वेषिषो ने जैनियो को आकर यह तानाजनी करना शुरू कर दिया कि जानो मन्दिर को जाकर देखो, क्या हो गया। इस प्रकार हमी उडाना शुरू कर दिया। जैनी कुछ समझ नही पाये । पर जब मन्दिर को सवेरे पूजा-दर्शन को खोला तो यह दृश्य देकर स्तब्ध रह गए और तब धर्म षियो द्वारा किए गये उपहास और कही गई बातो का अर्थ समझ मे आया । सब से पहले इटावा के जैनो को महगाव के जैनियो ने खबर दी और उन्होंने जैन महासभा को न्याय प्राप्त करने एव सहायता के लिये लिखा । इसके बाद महगाव के जैन पचो ने ग्वालियर दिगम्बर जैन ऐसोसियेशन को अपना यह मामला बतलाकर सहायता मागी । ग्वालियर दिगम्बर जैन ऐसोसियेशन ने राज्य के उच्च अधिकारियो से मिलकर मूर्तियो के सुराग के लिये सो० आई० डी० की नियुक्ति कराई । महगाव पुलिस के सब इन्सपेक्टर का तबादला कराया । दरवार कौसिल मे पूरा विवरण देने वाला एक मेमोरेन्डम भेजकर न्याय की माग की। सर्वसाधारण की जानकारी के लिये पूरा विवरण प्रकाशित किया गया । मूर्तियो की बरामदगी तथा मुलजिमो की गिरफ्तारी के लिये २०० रुपये का इनाम सरकारी गजट में निकलवाया गया । नियुक्ति सी० आई० डी० द्वारा प्रयत्न कराकर मूर्तिया बरामद कराई गई जिनमे दो पीतल की छोटी मूर्तियो को छोडकर शेष २५ मूर्तिया ३०० रुपये मल्लाहो देकर वरामद हुई। ऐसोसियेशन के तत्कालीन उत्साही मन्त्री श्री श्यामलाल पाडवीय ने मौके पर पहुंचकर जैनो को धीरज वधाया । कितनी ही बार जा जाकर अपने समक्ष साक्षिया कराई, सबूत इकट्ठा किया । पाडवीयजी को जहर देने का असफल प्रयत्न किया गया जिससे वे रास्ते से दूर कर दिये जायें। यह सब प्रयत्न करने पर भी कुछ हो नही पा रहा था और राज्य के भय से बड़े-बडे श्रीमान इसकी सहायता करने मे राज्य विरोध का खतरा लेना नही चाहते थे। इधर ग्वालियर राज्य इसको साधारण चोरी का रूप देकर इसको समाप्त कर देना चाहता था। यही नही उस चोरी मे एक जैनी को भी शामिल किया गया और मारपीट करके उससे व उसकी स्त्री इकवाल भी करा लिया गया । स्थिति जटिल बनती जा रही थी। पुलिस ने प्रतिवाद करके यह आरोप भी लगाया कि यह एक राज्यविरोधी व्यक्ति का धार्मिक अपमान का रंग देकर राज्य को बदनाम करने का प्रयत्न है । यह इशारा दि० जैन एसोसियेशन ग्वालियर के मन्त्री के प्रति था । श्री श्यामलाल पाण्डवीय ने इस काण्ड को दिगम्बर जैन परिषद के दिल्ली अधिवेशन के अवसर पर दिल्ली जाकर परिपद के सामने रखा। वहा भी ठण्डे रूप मे ही लिया जाने लगा पर स्वर्गीय दावू तनसुखराय जैन का अन्तरमानस धर्म के इस अपमान से विकल हो उठा और [ २४५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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