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________________ विचारवान व्यक्तियों में अग्रगण्य । सेठ प्रचासहजी सदस्य लोकसभा मैं स्वर्गीय श्री तनसुखरायजी जैन को गत तीस वर्षों से जानता हूँ। प्रापके हृदय में समाज-सेवा के लिए बडी लगन व भावना थी। एक समय जब आप एक वीमा कम्पनी के संचालक थे या मुख्य कार्यकर्ता थे, उस समय आपने मुझे आगरे मै दर्शन दिये थे तब से उनके विचारो की मेरे ऊपर छाप पडी और उसके बाद समय-समय पर जैन-ससार की जागृति के सम्बन्ध मे विचारों से अवगत होता रहता था। अभी चन्द वर्ष पूर्व मापने भारत जैन-मडल के श्री चिरजीलालजी की प्रेरणा पर दिल्ली में एक भारतीय जैन कान्फ्रेंस करने का कार्यक्रम बनाया। पर कुछ लोगो के मुखालफत के कारण उन्होने बन्द कर दिया। इसी प्रकार अ०भा० महावीर जयन्ती कमेटी को भी जैन कन्वेन्शन करने का विचार स्थगित करना पड़ा, कारण हमारे जनसमाज मे कुछ व्यक्ति अपने पुराने विचारो से ओतप्रोत है, वे समयानुसार सुधारो से परे रहना चाहते थे। स्वर्गीय श्री तनसुखरायजी की सेवाये समाज के लिए अकथनीय थी। वे बड़े विचारवान और समाज के लिए हमदर्द व्यक्तियो मे अग्रगण्य की पक्ति मे थे । उनकी समाजसेवायें कभी भी नहीं भुलाई जा सकती है। मै उनके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धाजलि अर्पित करता हूँ। जन-कल्याण हितैषी साहू श्री श्रेयांस प्रसादजी जैन भूतपूर्व अध्यक्ष, भा० वि० मन परिषद् तथा अ० भा० व्यापार संघ, घम्बई यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप लोग लाला तनसुम्बरायजी जैन की स्मृति मे एक स्मृति-प्रन्थ प्रकाशित करने जा रहे है। समाज सेवियो की सेवाओ के मूल्याकन के लिए ऐसे अन्य बहुत ही अच्छे माध्यम सिद्ध हुए हैं। 'श्री तनसुखराय जैन स्मृति प्रन्य समिति के तत्वावधान में यह सकलन बहुत ही अच्छा प्रायोजन है। लाला तनसुखरायजी की सामाजिक सेवामओ और जन-कल्याण-हित में किये गये प्रयलों को सम्मान देना एक बड़ा सामाजिक उत्तरदायित्व है, जिसके निर्वाह के लिए पाप लोगो के साथ मेरा पूरा-पूरा सहयोग है। इस सप्रयास में मेरी शुभ कामनाएँ आप के साथ है। कृपया इस पवित्र कार्य में मेरी भी श्रद्धांजलि स्वीकार करें।
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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