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________________ स्तुति ऐ वीतराग स्वामी वेशक तू लामका है । लेकिन हमारे दिल के अन्दर तेरा निशा है ॥ १ ॥ ये है जमीन किसकी किसका यह आस्मा है । तू है जहा का मालिक तेरा ही यह जहा है ||२| सहरा मे है चमन मे गुलशन मे है खिजा मे । ऐ वीतराग स्वामी मस्कन तेरा कहा ॥३॥ भाखो मे है कि दिल मे या है मेरी नजर मे । मैं क्या बताऊ तुझको तेरा निशा कहा है ||४|| हर शे मे तेरे जलवे ऐसे बसे हुए है । हम देखते हैं तुझको नज़रो से गो निहार है ॥५॥ ऐ दीनबन्धु भगवन हामी है तू दया का । दुनियां में जब सुनहरी सिक्का तेरा रखा है ॥६॥ ऐ 'दास' क्या बताऊ जिनराज का मै तुल्वा । वोह अपना शहशाह है वो अपना हुक्मरा है ||७ * भगवान महावीर विषम दु.ख की ज्वालाओ से जला हुआ था जब ससार । दानव वन, मानव था करता श्रवलान पर अत्याचार | शूद्र-जनो का सुन पडता था ससति तल मे हाहाकार | धर्म नाम पर होता था नित पशुओ का भीपण सहार ॥ प्रकृति प्रकम्पित होकर अपने गिन-गिन अश्रु वहाती थी । मानवता रोती थी केवल दानवता हँस पाती थी । कर्मकाण्ड का जाल बिछाकर दम्भी मौज उडाते थे । नीति न्याय गला घोटकर न्यायी पीसे जाते थे । १ जंगल २ बाग ३ पतझड़ ४ मकान ५ वस्तु ६ छुपा हुआ । [ १ee
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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