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________________ ३२८ जैनशासन प्रिय प्राणोका परित्याग करनेवाले जैन वीरोका पवित्र नाम धार्मिक इतिहासमे सदा अमर रहेगा। ___दयाके क्षेत्रमे जैनियोका महत्त्वपूर्ण स्थान है। आज जब कि जडवाद के प्रभाववा लोग मासाहार आदिकी ओर बढते जा रहे है और असयमपूर्ण प्रवृत्ति प्रवर्धमान हो रही है, तव जीवोकी रक्षा तथा सयमपूर्ण साधना द्वारा मनुष्य भवको सफल करनेवाले पुण्य पुरुषोसे जैन समाज आज भी सपन्न है। श्रेष्ठ अहिंसाके मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदनापूर्वक पालक प्रात स्मरणीय चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्रीशान्तिसागर महाराज सदृश वीतगग, परमजान दिगम्बर जैन श्रमणो का सद्भाव दयाके क्षेत्रमे भी जैन सस्कृतिको गौरवान्वित करता है। जनश्रमणोके दिगम्वरत्वके गर्भमै उत्कृष्ट दयाका पवित्र भाव विद्यमान रहता है। एक विद्वान्ने लिखा है-"जैन मुनिकी वीरता गान्तिपूर्ण है। प्रत्येक शौर्यसपन्न कार्यके पूर्वमे प्रवल इच्छाका सद्भाव पायः जाता है, इस दृप्टिसे इसे क्रियाशील वीरता भी कहते है।" ___ सग्राम-भूमिमें जो पराक्रम प्रदर्शित किया जाता है वह वीरताके नामसे विश्वविख्यात है। इस क्षेत्रमे भी जनसमाजका महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। साधारणतया जैन-तत्त्वज्ञानके शिक्षणसे अपरिचित व्यक्ति यह भ्रान्त धारणा बना लेने है कि कहा अहिंसाका तत्त्वज्ञान और कहा युद्धभूमिमे पराक्रम? दोनोमे प्रकाग-अधकार जैसा विरोध है। कितु वे यह नही जानते कि जैनधर्म में गृहस्थके लिए जो अहिसाकी मर्यादा वाधी गई है उसके अनुसार वह निरर्थक प्राणिवध न करता हुआ न्याय और कर्तव्यपालन निमित्त अरत्र-शस्त्रका सचालन भी करता है। इस विषयमे भारतीय इतिहाससे प्राप्त सामग्री यह सिद्ध करती है कि पराक्रमके प्रागण में महावीरके आराधक कभी भी पीछे नहीं रहे है। रायबहादुर महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर हीराचंद अोझाने 'राजपूतानेके जैनवीर' की भूमिकामें लिखा है--"वीरता किसी जातिविशेषकी सपत्ति नहीं है।
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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