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________________ पराक्रमके प्रागणमे ૨૨૭ धर्मके क्षेत्रमें वीरता दिखानेमे भी जैन गृहस्थोका चरित्र उदात्त रहा है। वौद्ध शासकके अत्याचारके आगे अपने मस्तक न झुका मृत्युकी गोदमे सहर्ष सो जानेवाले, तार्किक अकलकदेवके अनुज वालक निकलंकका धर्म-प्रेम वीरताका अनुपम आदर्श है। विपत्तिकी भीषण ज्वालामेंसे निकलनेवाले जैन धर्मवीरोकी गणना कौन कर सकता है ? इतिहासकार स्मिथ महाशयने अपने 'भारतवर्पके इतिहास' मे लिखा है कि 'चोलवशी पाण्डयनरेश सुन्दरने अपनी पत्नीके मोहबग वैदिक धर्म अंगीकार किया और जैन प्रजाको हिंदू धर्म स्वीकार करनेको वाध्य किया। जिनके अत करणमे जैनगासनकी प्रतिष्ठा अंकित थी, उनने अपने सिद्धान्तका परित्याग करना स्वीकार नहीं किया। फलत. उन्हे फासीके तख्तेपर टाग दिया गया। स्मिथ महाशय लिखते ह-ऐसी परपरा है कि ८००० जैनी फासीपर लटका दिये गये थे । उस पागविक कृत्यकी स्मृति मदुराके विख्यात मीनाक्षी नामके मदिरमें चित्रों के रूपमे दीवालपर विद्यमान है। आज भी मदुराके हिंदू लोग उस स्थलपर प्रतिवर्ष आनदोत्सव मनाते है जहा जैनोका सहार किया गया था। इसे व्यतीत हुए अभी दो सदीका समय न हुआ होगा जब कि प्रख्यात जैनग्रथकार पडितप्रवर टोडरमलजी, जयपुरके तत्कालीन नरेशके कोपवश हाथीके पैरोंके नीचे दववाकर मार डाले गये थे। इस प्रकार आत्माकी अमरतापर विश्वास कर सत्य और वीतराग धर्मके लिए परम f. "Tradition avers that 8000 (eight thousand) of them (Jains) were impaled Memory of the facts has been preserved in various ways & to this day the Hindoos of Madura where the tragedy took place celebrated the anniversary of the impalement of the Jains as a festival (Utsav)"_V Smith-His, of India
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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