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________________ २८२ जैनशासन उमास्वामि महाराजन कहा है-"विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात तद्विशेषः।" विधि, द्रव्य, दाता तथा पात्रकी विशेषतासे दानमे विशेषता होती है। अक्षयतृतीयाके उज्ज्वल सदेशको प्रत्येक गृहस्थको अपने अस करणमें पहुँचाना चाहिए। ___ श्रुतपंचमी-श्रुत शब्द 'शास्त्र' का वाचक है। ज्येष्ठ सुदी पचमी का मगलमय दिवस सरस्वतीकी समाराधनाका सुदर समय है। सौराष्ट्र देशकी गिरिनार पर्वतकी चद्रगुहामे प्रात स्मरणीय आचार्य धरसेनने भगवान महावीरके कर्म-साहित्य सम्वन्धी परपरासे प्राप्त प्रवचनको लोकहितार्थ भूतवलि और पुष्पदन्त नामक दो मुनीन्द्रोको आषाढ शुक्ला एकादशीके प्रभातमे पूर्णतया पढाया था। इसके अनन्तर गुरुदेवका स्वर्गवास हो गया और शिष्ययुगलने कर्मसाहित्यपर षट्खडागम सूत्र नामकी महान् रचना आरभ की। कुछ काल पश्चात् पुष्पदन्त आचार्य सहयोग न दे सके, अत शेषाश भूतवलि स्वामीने लिखा। उस पट्खडागम शास्त्रकी साधर्मी समुदायने ज्येष्ठ सुदी पचमीको बड़े वैभव तथा उत्साहपूर्वक पूजा कर सरस्वतीके प्रति अपनी उत्कृष्ट श्रद्धा व्यक्त की। तवसे श्रुतपचमी नामका पर्व प्रख्यात हो गया। श्रुतपचमीमे ग्रथोको उच्च स्थानपर विराजमान करके सम्यक्ज्ञानकी पूजा की जाती है। साधक यह भी चिंतन करता है कि यथार्थ ज्ञान आत्मा का स्वभाव है। वाह्य ग्रन्थ उस ज्ञान-ज्योतिको प्रदीप्त करनेमें सहायक होते है, अत कृतज्ञतावश उस साधनाका समादर करना साधक अपना कर्तव्य समझता है। १ "ज्येष्ठसितपक्षपञ्चम्यां चातुर्वर्ण्यसंघसमवेतः। तत्पुस्तकोपकरणwधात् क्रियापूर्वक पूजाम् ॥ १४३ ॥ श्रुतपञ्चमीति तेन प्रख्याति तिथिरियं परामाप । अद्यापि येन तस्यां श्रुतपूजां कुर्वते जैनाः ॥ १४४ ॥" -इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार ।
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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