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________________ साधकके पर्व २८३ अभी हमने कुछ मगलमय प्रमुख पर्वोका वर्णन किया है। ये पर्व सादि है, कारण उनकी उद्भूति विशेष घटनाओके आधारपर हुई। अव हम थोडेसे ऐसे पर्वोपर प्रकाश डालना उचित समझते है, जो अनादि पर्वके नामसे प्रसिद्ध है। अनादि अनन्त विश्वपर दृष्टिपात करे, तो ऐसा स्थान और दिवस इस मनुष्यलोकमे नही मिलेगा, जव कि किसी महान् साधकने अपनी सफल साधनाके प्रसादसे निर्वाणका पद न प्राप्त किया हो, फिर भी लोक-व्यवहारनिमित्त प्रमुख पुरुषोसे सम्वन्धित या मुख्य सयमकी ओर आत्माको आकर्षित करनेवाले मगलकालको विशेष मान्यता प्रदान की जाती है। ____ अष्टाह्निका-आषाढ, कार्तिक तथा फाल्गुन मासके अन्तके आठ. दिवस पर्यन्त यह पर्व प्रतिवर्ष तीन बार मनाया जाता है। इसे महापर्व कहा है "सरब परब में बड़ो अठाई परब है नदीसुर सुर जाहि, लिए वसु दरब है।" नदीश्वर महाद्वीपमे विद्यमान जिन मदिरोकी वदना दिव्यात्माएँ आठ दिवस पर्यन्त बडे आनद तथा उत्साहपूर्वक किया करती है। जैन पुराण ग्रथोमे इस पर्वका अनेक बार वर्णन आता है। जैन रामायण-पद्मपुराणमे रविषेणाचार्य लिखते है, कि आषाढ शुक्ला अष्टमी से पूर्णिमापर्यन्त महाराज दशरथने वडे वैभवके साथ आठ दिवसपर्यन्त उपवास करके जिनेन्द्र भगवान्का अभिषेक पूजादि द्वारा महान् पुण्यका सचय किया था। १ "तत्य कालमंगलं गाम जम्हि काले केवलणाणादिपज्जएहि परिणदो कालो पावमलगालणत्तादो मंगल । तस्योदाहरणम्, परिनिष्क्रमणकेवलज्ञानोत्पत्ति-परिनिर्वाण-दिवसादयः । जिनमहिमसम्बद्धकालोऽपि मंगलं यथा नन्दीश्वरदिवसादिः। -धवलाटोका भाग १, पृ० २६
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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