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________________ साधकके पर्व २८१ हे कुरुराज, आज तुम भगवान् वृषभदेवके समान पूजनीय हो, कारण श्रयास, तुम दान तीर्थके प्रवर्तक हो, अत तुम महापुण्यशाली हो। आज उस घटनाको व्यतीत हुए बहुत काल हो गया, किन्तु 'प्रतिवर्ष अक्षय तृतीयाका मगलमय दिवस साधककी आत्माको पुन पुन दिव्य प्रकाश प्रदान करता हुआ सत्पात्र दानकी ओर प्रेरित करता है। दानके विषयमे यह बात स्मरण करने योग्य है कि देय वस्तुकी बहुमूल्यतापर दानकी महत्ता अवलम्बित नही है। महाराज श्रेयासने थोडा सा इक्षुरस भगवान् वृषभदेवको आहारमे दिया था, उस रसका आर्थिक दृष्टिसे कोई भी मूल्य नही है, किन्तु उसका परिणाम इतना महत्त्वपूर्ण हुआ कि दानका दिवस सपूर्ण शुभकार्योंके लिए मगलमय बन गया। चक्रवर्ती भरत तकने उस दानके दाताको दानतीर्थकर कहकर सम्मानित किया। ___ भगवान् महावीरके चरित्रसे ज्ञात होता है कि चेटक नरेशकी गुणवती पुत्री कुमारी चदनाने बन्दीगृहमे रहते हुए भी कोदो चावलके आहारदान द्वारा भगवान् महावीरको सम्मानित कर आश्चर्यप्रद कीर्ति 'प्राप्त की। 'पद्मपुराणमे बताया है कि मर्यादापुरुषोत्तम महाराज राम-चद्रने दण्डक वनमें मिट्टी और पत्तोके बने हुए पात्रमे भोजन बनाकर मासोपवासी सुगुप्ति तथा सुगुप्त नामक दिगम्बर मुनियोको श्रद्धा तथा अत्यन्त हर्षयुक्त हो सीताजी एव लक्ष्मणजीके साथ आहार अर्पण किया था। उस समय उन योगीन्द्रोको दिए गए आहारदानकी महिमा प्राचार्य रविषणने पद्मपुराणमे वडी सजीव भाषामे बताई है। __ इससे यह वात स्पष्टतया प्रमाणित होती है कि पात्रको विधिपूर्वक योग्य वस्तु उचित कालमे देनेसे महाफलकी प्राप्ति होती है। सूत्रकार १ पद्मपुराण पर्व ४१।
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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