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________________ साधकके पर्व २७७ स्मृतिको जागृत करता है । समग्र भारतमे दीपमालिकाकी मान्यता भगवान् महावीरके व्यक्तित्वके प्रति राष्ट्रके समादरके परपरागत भावको स्पष्ट बताती है, यद्यपि साप्रदायिक दृष्टिकोणवाले कल्पित घटनाओसे ऐतिहासिक दीपावलीको सम्बद्ध बता अपनी सकीर्ण दृष्टिको पुष्ट करते है । कोई-कोई लोग दयानदजी सरस्वती ( जो इस बीसवी सदीके व्यक्ति हुए हैं) के मरणके उपलक्ष्यमे दिवालीकी मान्यता बताते हुए अपने सप्रदायमोह तथा अतिसाहसपूर्ण उद्गारके लिये उल्लेखनीय माने जा सकते है । इतिहासका उज्ज्वल आलोक दीपावलीका सम्बन्ध भगवान् महावीर के निर्वाणसे स्पष्टतया बताता है। दीपावलीका मगलमय पर्व आत्मीक स्वाधीनताका दिवस है । उस दिन सध्याके समय भगवान्‌के प्रमुख शिष्य गौतम गणधर को कैवल्य लक्ष्मीकी प्राप्ति हुई थी। इससे दिव्यामाओके साथ मानवोने केवलज्ञान - लक्ष्मीकी पूजा की थी। इस तत्त्वको न जाननेवाले रुपया पैसाकी पूजा करके अपने आपको कृतार्थ मानते है । वे यह नही सोचते, कि द्रव्यकी अर्चनासे क्या कुछ लाभ हो सकता है ? वे यह भूल जाते है कि "उद्योगिनं पुरुषसहमुपैति लक्ष्मीवेन देयमति कापुरषा वदन्ति ।" दीपावली के उत्सव पर सभी लोग अपने-अपने घरोको स्वच्छ करते है, और उन्हे नयनाभिराम बनाते है । यथार्थमे वह पर्व आत्माको राग, द्वेष, दीनता, दुर्बलता, माया, लोभ, क्रोध आदि विकारो से बचा जीवनको उज्ज्वल प्रकाश तथा सद्गुण-सुरभि सपन्न बनानेमे है । यदि यह दृष्टि जागृत हो जाय, तो यह मानव महावीर बननेके प्रकाशपूर्ण पथपर प्रगति किए बिना न रहे। दीपावली के दिनसे वीरनिर्वाण सवत् आरभ होता है। अभी (सन् १९४९ में) वीर निर्वाण सवत् २४७६ प्रचलित है। यह सर्व प्राचीन प्रचलित सवत्सर प्रतीत होता है। मगलमय महावीरके निर्वाणको
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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