SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ जैनशासन न्त्रताकी स्मृतिमें प्रदीपपक्तियोके प्रकाश द्वारा जगत् भगवान महावीर प्रभुके प्रति अपनी श्रद्धाजलि अर्पित करता हुआ अपनी आत्माको निर्वाणोन्मुख बनानेका प्रयत्न करता है। हरिवशपुराणसे विदित होता है, कि भगवान् महावीरने सर्वज्ञताकी उपलब्धिके पश्चात् भव्यवृन्दको तत्त्वोपदेश दे पावानगरीके मनोहर नामक उद्यानयुक्त वनमे पधारकर स्वाति नक्षत्रके उदित होनेपर कार्तिक कृष्णाके सुप्रभातकी सध्या के समय अघातिया कर्मोका नाशकर निर्वाण प्राप्त किया। उस समय दिव्यात्माओने प्रभुकी और उनके देहकी पूजा की। उस समय अत्यन्त दीप्तिमान जलती हुई प्रदीपपक्तिके प्रकाशसे आकाश तकको प्रकाशित करती हुई पावानगरी शोभित हुई। सम्राट श्रेणिक (विम्बसार) आदि नरेन्द्रोने अपनी प्रजाके साथ महान् उत्सव मनाया था। तबसे प्रतिवर्ष लोग भगवान् महावीर जिनेन्द्र निर्वाणकी अत्यन्त आदर तथा श्रद्धापूर्वक पूजा करते है। आज भी दीपावलीका मगलमय दिवस भगवान् महावीरके निर्वाणकी १ "जिनेन्द्रवीरोऽपि विबोध्य सन्ततं समन्तत भव्यसमूहसन्ततिम। प्रपद्य पावानगरी गरीयसी मनोहगेद्यानवने तदीयके ॥ १५ ॥ चतुर्थकालेऽर्थचतुर्थमासकैविहीनता विश्चतुरब्दशेषके। स कातिके स्व.तिषु कृष्णभूतप्रभातसन्ध्यासमये स्वभावतः ॥ १६ ॥ अघातिकर्माणि निरुद्धयोगको विध्य घातीन्धनवद्विबन्धनः। विबन्धनस्थानमवाप्य शङ्करो निरन्तरायोरुस्खानुबन्धनम् ॥ १७ ॥ ज्वलत्प्रदीपालिकया प्रबुद्धया सुरासुरैर्दीपितया प्रदीप्तया। तदा स्म पावानगरी समन्ततः प्रदीपिताकाशतला प्रकाशते ॥१६॥ ततस्तु लोकः प्रतिवर्षमादरात् प्रसिद्धदीपालिकयात्र भारते। समुद्यतः पूजयितुंजिनेश्वरं जिनेन्द्रनिर्वाणविभूतिभक्तिभाक् ॥२१॥" देखो-शक संवत् ७०५ रचित हरि० पु० सर्ग ६६ ।
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy