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________________ जैनशासन अमगलनाशक मानकर भव्य लोग अपने व्यापार आदिका कार्य दीपावली से ही प्रारंभ करते है । अक्षयतृतीया - रक्षावधन, दीपमालिकाके समान अक्षय तृतीयाका दिवस भी सारे देशमे मंगल दिवस माना जाता है। वैशाख सुदी तृतीयाके दिन भगवान् वृषभदेव को कर्मभूमिके प्रारभमे सर्वप्रथम आहार दान देकर अक्षय पुण्य सपत्ति प्राप्त करनेका अनुपम सौभाग्य हस्तिनागपुरके नरेश श्रेयास महाराजने प्राप्त किया है । इस कारण यह दिवस अत्यन्त पवित्र तथा मगलमय माना जाता है। २७८ भगवत् जिनसेनाचार्यने अपने महापुराणमे अक्षय तृतीयाके विषयमें बताया है कि भगवान् वृषभदेवने छह मास पर्यन्त अनशनके उपरान्त आहार ग्रहण करनेके लिये विहार प्रारंभ किया । वह कर्मभूमिरूप युगका प्रारभिक समय था । लोगोको इस बात का बोध न था, कि किस विधिपूर्वक दिगम्बर मुनिमुद्राधारो भगवान्‌को सन्मान पूर्वक आहार कराया जाय । भगवान्' मौनपूर्वक एक स्थानसे दूसरे स्थानको विहार करते थे तब भक्त १ "यतो यतः पद धत्त मौनि चर्यास्म संश्रितः । ततस्ततो जनाः प्रीताः प्रणमन्त्येत्य सम्भूमात् ॥ प्रसीद देव किं कृत्यमिति केचिज्जगुगिरम् । तूष्णींभावं व्रजन्तं च केचित्तमनुवनजुः ॥ परे परार्द्धरत्नानि समानीय पुरो न्यधु । इत्यूचुश्च प्रसीदेनामिज्यां प्रतिगृहाण नः ॥ वस्तुबाहनकोटीश्च विभोः केचिदढौकयन् । भगवांस्तास्वर्नाथत्वात्तूष्णीको विजहार सः ॥ केचित्स्रग्वस्त्रगन्धादीनानयन्ति स्म सादरम् । भगवन् परिधत्स्वेति पटल्यासह भूषणैः ॥ केचित् कन्याः समानीय रूपयौवनशालिनीः । परिणाययितुं देवमुद्यता धिक् विमूढताम् ॥ केचिन्मज्जनसामग्रचा संश्रित्योपारुधन् विभुम् । परे भोजनसामग्री पुरस्कृत्योपतस्थिरे ॥ विभो भोजनमानीतं प्रसीदोपविशासने । सम मज्जनसामग्र्या निविंश स्नानभोजने ॥ एषाञ्जलिः कृतोऽस्माभिः प्रसीदानुगृहाण नः । इत्येकेऽघोषिषन्मुग्धा विभुमज्ञाततत्क्रमाः ॥" - महापु० पर्व २० | १४-२२ ।
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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