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________________ साधकके पर्व २७५ दूर किया । विष्णुकुमार मुनिराजने श्रावणी पूर्णिमाके प्रभात मे साधुओका उपसर्ग दूर किया । बलिको अपने पाप कर्मके कारण निन्दा प्राप्त हुई - तथा वह देश के बाहर कर दिया गया। आचार्य जिनसेन कहते है - "उपसर्गं विनाश्याशु बलि बद्ध्वा सुरास्तदा । विनिगृह्य दुरात्मानं देशाद् दूर निराकरन ॥" - हरिवंशपु० २० - ६० । हस्तिनागपुरके श्रावकोने उपसर्ग दूर होने पर अकपन आदि मुनी - न्द्रोकी भक्तिभावपूर्वक पूजा की तथा योग्य आहार देकर पुण्य सचय किया। जैसे महामुनि विष्णुकुमारने साधुसघपर वात्सल्य दिखाकर उनका उपसर्ग निवारण किया, उसी प्रकार जिनेन्द्र प्रतिमा, मन्दिर, मुनिराज आदि पर विपत्ति आने पर प्राणोकी भी बाजी लगाकर धर्म तथा धर्मात्माओका रक्षण करना रक्षाबन्धन पर्वका सदेश है । उत्कृष्ट सात्त्विक प्रेमका प्रवोधक यह रक्षाबन्धन या श्रावणी पर्व है । उस दिन साधक उपसर्गं विजेता अकपनाचार्य आदिकी पूजा करता हुआ कहता है" श्री अकंपन गुरु आदि दे मुनि सात सौ जानो । तिनकी पूजा रचौ सुखकारी भव भवके अघ हानो ।। " रक्षाबंधनके समय बहिनके द्वारा भाईको राखी बाधनेका सक्षिप्त रूपक यथार्थमे वात्सल्य रसका उद्बोधक है । 'बहिन' वात्सल्य भावना की प्रतीक है । 'भाई' आदर्श श्रावकका रूपक है। धार्मिक श्रावक इसदिन वात्सल्य भावनाकी रक्षाका बन्धन स्वीकार करता है । वीतराग शासनके समाराधक यदि इस पर्वके भावको हृदयगम करे तो समाज तथा विश्वका कल्याण हो। सामाजिक जागृति वात्सल्य भावको धारण करने में है । दीपावली - कार्तिक कृष्णा अमावस्याके सुप्रभातमे पावापुरीके उद्यान से भगवान् महावीर प्रभु ईस्वी सन्से ५२७ वर्ष पूर्व सपूर्ण कर्मशत्रुओको जीतकर अनन्त ज्ञान, अनन्त आनंद, अनंत शक्ति आदि अनन्त गुणोको प्राप्त कर मुक्तिधामको पहुचे थे। उस आध्यात्मिक स्वत
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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