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________________ २६ जीवनमें उच्चताको प्रतिष्ठित करनेके लिए साधकको उचित है कि वह सयम तथा सदाचरणकी अधिकसे अधिक समाराधना करे। असयमपूर्ण जीवनमे आत्मा शक्तिका सचय नही कर सकता। विषयोन्मुख बननेसे आत्मामें दैन्य परालम्बनके भाव पैदा होते है। इसमें शक्तिका क्षय होता है सग्रह नही। सयम (Self control) और 'आत्मावलम्बन (Self reliance) के द्वारा यह आत्मा विकासको प्राप्त होता है। इससे आत्मामे अद्भुत शक्तियोकी जागृति होती है। अपने मन और इद्रियोको वशमें करनेके कारण साधक तीन लोकको वशमे करने योग्य अपूर्व शक्तिका स्वामी बनता है। इतना ही क्यो, इन सद्वृत्तियोके द्वारा यह परमात्मपदको प्राप्त कर लेता है। जिस प्रकार सूर्यको किरणे विशिष्ट काच द्वारा केन्द्रित होने पर अग्नि उत्पन्न कर देती है, इसी प्रकार सदाचरण, सयम सदृश साधनोके द्वारा चित्तवृति एकाग्र होकर ऐसी विलक्षण शक्ति उत्पन्न, करती है कि जन्म-जन्मान्तरके समस्त विकार तथा दोष नष्ट हो जाते हैं और यह आत्मा स्फटिकके सदृश निर्मल हो जाती है। आज पश्चिम तथा उसके प्रभावापन्न देशोमें जडवाद (Materialism का विशेष प्रभुत्व है। इसने आत्माको अन्धासदृश बना दिया है, इस कारण शरीर और इद्रियोकी आवाज तो पद पद पर सुनाई देती है, किन्तु अन्तरात्माकी ध्वनि तनिक भी नही प्रतीत होती । आत्मा स्वामी है । इन्द्रियादिक उसके सेवक है। आत्मा अपने पदको भूलकर सेवकोकी आज्ञानुसार प्रवृत्ति करता है। जडवादके जगत्मे आत्मा अस्तित्वहीनसा वना है। उसे इद्रियो तथा शरीरका दासानुदास सदृश कार्य करना पडता है। ___ जडवादकी नीव पर प्रतिष्ठित वैज्ञानिक विकासकी वास्तविकता युरोपके प्रागणमें खेले गये महायुद्धोने दिखा दी। इसमे सन्देह नही विज्ञानने हमें बहुत कुछ आराम और आनन्दप्रद सामग्री प्रदान की, किन्तु अन्तमें उसने ऐसे घातक पदार्थ देना शुरू किया कि उन्हें देख मनुष्य सोचता है कि जितना हमें प्राप्त हुआ, उसकी अपेक्षा अलाभ अधिक हुआ। किसी व्यक्ति
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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