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________________ साधकके पर्व २७३ किन्तु क्षुल्लकजीके तप प्रभावसे मंत्री लोग कोलित हो गए। प्रभातकालीन प्रकागने उन पापियोका चरित्र जगत्के समक्ष प्रकट कर दिया। राजाको जब मत्रियोकी इस जघन्य वृत्तिका पता चला, तब उसने मग्रियो को उचित दड दे तिरस्कारपूर्वक राज्यसे निर्वासित कर दिया। ___ अनतर वलि आदि पर्यटन करते हुए हस्तिनागपुर पहुंचे। अपनी योग्यतासे वहाके जैन राजा पद्मरायको उन्होने शीघ्र ही प्रभावित किया। पद्मरायको अपने प्रतिद्वन्दी सिंहबल नरेगकी सदा भीति रहा करती थी। वलिने अपनी कूटनीतिसे सिंहवलको शीघ्र ही वधन वद्ध कर पद्मरायको चिन्तामुक्त कर दिया। इसपर अत्यन्त प्रसन्न हो पद्मराय वलिसे वोले, मन्त्री तुम्हें जो कुछ भी चाहिये, मागो। मै उसकी पूर्ति करूगा। वलिने कहा-महाराज, जव हमे आवश्यकता होगी, तव हम आपसे वरकी याचना करेंगे। अभी कुछ नही चाहिये। राजाने यह स्वीकार किया। ___ कुछ समयके अनन्तर अकपनाचार्य पूर्वोक्त सात सौ तपस्वियो सहित विहार करते हुए हस्तिनागपुरमें वर्षाकाल व्यतीत करनेके उद्देश्यसे पधारे। जैननरेश पद्मरायके अधीन रहने वाली जिनेन्द्रभक्त जनताने साधुओके शुभागमनपर अपार आनन्द व्यक्त किया। बलि और उनके सहयोगियोने सोचा, इस अवसरपर इन साधुओसे वदला लेना उचित है, अन्यथा जैन नरेशके पास अब अपना अस्तित्व न रहेगा। पुराने वर को स्मरण कराकर वलिने पद्मरायसे सात दिनका राज्य मांगा। मंत्रियोके दुर्भावको विना जाने राजाने एक सप्ताहके लिए वलिको राजाका पद प्रदान कर दिया। अव तो अमात्य वलि राजा वन गया। साधुओके सहार निमित्त उसने यज्ञका जाल रचा। ___ नरमेधयज्ञका नाम रखकर मुनियोकी आवासभूमिको हड्डी, मांस आदि घृणित पदार्थोसे पूर्ण कराकर उसने उसमें आग लगवा दी, जिसके भीषण एवं दुर्गन्धयुक्त धुएसे साधु लोगोकी दम घुटने लगी। वलिने १८
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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