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________________ २७२ जैनशासन है, तो धर्मामृत वर्षा द्वारा श्रमणगण अथवा उनके आराधक सत्पुरुष स्व तथा पर का कल्याण करते हुए आत्माको निर्मल बनाते है। रक्षाबधन-यह पर्व सामियोके प्रति वात्सल्यभावका स्मारक है। जैन-शास्त्रकारोने बताया है कि उज्जैनमे श्रीधर्म नामके राजा थे। उनके बलि, बृहस्पति, प्रह्लाद और मुचिन नामके चार मत्री थे। वहा अकपन आचार्यके नेतृत्वमे सातसौ जैन साधुओका विशाल सघ पधारा। मन्त्रियोके चित्तमे जैनधर्मके प्रति प्रारभसे ही विद्वेषभाव था। उनने श्रीधर्म नरेन्द्रको मुनिसम हकी वदनाके लिये अनुत्साहित किया, किन्तु राजाको आतरिक प्रेरणा देख मत्रियोको भी मुनिवदनाको जाना पड़ा। उस समय सघस्थ सभी साधु आत्मध्यानमे निमग्न थे। राजा साधुओकी दिगम्बर, शान्त, निस्पृह मुद्रा देखकर प्रभावित हुआ, किन्तु मत्रिमडलने साधुओके प्रति विद्वेषके भाव व्यक्त किये। इतनेमे मार्गमे श्रुतसागरजी क्षुल्लक दिखाई दिए, जिनको सधपति अकपनाचार्यका आदेश नहीं मिला था कि यहाके राजमत्री जिनधर्मके विद्वेषी है अत मौनवृत्ति रखना उचित है, उनसे वाद-विवाद नहीं करना चाहिये, कारण इससे हानिकी सभावना है। __ मत्रियोने श्रुतसागर क्षुल्लकके समक्ष पवित्र धर्मपर झूठा आक्षेप लगाया तव क्षुल्लक महाराजने अपने पाडित्यपूर्ण उत्तरसे उनको पराजित किया। मत्री लोगोने अपनेको अपमानित अनुभवकर सघके समस्त साधुओ पर उपद्रव करनेकी सोची।। श्रुतसागर क्षुल्लकसे मत्रियोके वार्तालाप तथा उनकी पराजयका हाल सुनकर अकपनाचार्यने निश्चय किया, कि आज सघ पर आपत्ति आए विना न रहेगी, अत उनने मध्याह्नमे विवादके स्थलपर ही श्रुतसागर क्षुल्लकको जाकर ध्यान करनेका आदेश दिया। ____श्रुतसागरजी बड़े ज्ञानी तथा योगी थे। वे आत्मध्यानमे मग्न थे। नीरव रात्रिमे उक्त मत्रियोने तलवारसे उनपर आक्रमण किया,
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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