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________________ आत्मजागृतिके साधन-तीर्थस्थल २६५ जाकी नाम-महिमासो अधातु कनक करे, पारस पाखान नामी भयो है खलकमें। जिन्हको जनमपुरी नामके प्रभाव हम, आफ्नो सरूप लखो भानुसो भलकमें। सोई प्रभु पारस महारस के दाता अब, दीजे मोहि साता दृग लीलाकी ललकमें।" -नाटक समयसार, ३ । जैन संस्कृतिक विकास और सवर्द्धनकी पुनीत पुण्य-भूमिके रूपमें विहार प्रान्तके राजगृहीका अत्यन्त उच्च स्थान है। कारण, वासुपूज्य भगवान्को छोड शेष २३ तीर्थकरोने कैवल्य लाभके उपरान्त अपनी धार्मिक देशनासे राजगिरिको पवित्र किया था। वीसवे तीर्थंकर भगवान् मुनिसुव्रतके पुण्य जन्म से यह पच शैलपुर-राजगिरि पवित्र है-"पञ्च शैलपुरं पूतं मुनिसुव्रतजन्मना ॥" हरि० पु० ५२-३ ॥ ___भगवान् महावीरके समवसरण-धर्मसभाके प्रधान पुरुष-रत्न सम्राट श्रेणिक-बिम्बसारकी निवासभूमि और राजधानी राजगृही रही है। राजगृहीके पूर्वमे चतुष्कोण ऋपिशैल, दक्षिणमे वैभार और नैऋत्य दिशामें विपुलाचल पर्वत है, पश्चिम, वायव्य और उत्तर दिशामें छिन्न नामका पर्वत है, ईशान दिशामें पाण्डु नामका पर्वत है।' हरिवंशपुराणसे विदित होता है कि भगवान् महावीरने जृम्भिक ग्रामकी ऋजुकूला नदीके तीर वैशाख सुदी १० को कैवल्य प्राप्त किया था। गणधरका योग न मिलने के कारण ६६ दिन तक प्रभुका मौन विहार हुआ और वे राजगृह नगर पधारे। आचार्य जिनसेन राजगृहका विशेषण 'जगतख्यातम्' देकर उस पुरीकी लोक प्रसिद्धताको प्रकट करते हैं। अनन्तर भगवान्ने जिस प्रकार सूर्य विश्वके प्रबोधन निमित्त उदयाचलको प्राप्त होता है, उसी प्रकार अपरिमित श्रीसम्पन्न विपुलाचल शैलपर आरोहण किया। हरिवंश पुराणमें लिखा है
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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