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________________ २६४ जैनशासन करता है उसी प्रकार तीर्थंकर भगवान्के गर्भ, जन्म, तपश्चर्या तथा कैवल्योत्पत्तिके स्थान भी विशेष उद्बोधक माने जाते है। भगवान् पार्श्वनाथ तथा सुपार्श्वनाथ तीर्थकरके जन्मसे काशी नगरी पवित्र हुई और वह साधकोके लिये पुण्यधाम बन गई । इन तीर्थंकरोके जन्मसे पवित्र बनारसी नगरीके प्रति भक्ति प्रकट करनेके लिये श्रीयुत खरगसैनजी जौहरीने अपने होनहार चिरजीव और सर्वमान्य महाकविका नाम बनारसीदास रखा था। अपने अर्धकथानकके आरम्भमे जो पद्य इन्होने दिए है वे उद्बोधक होनेके साथ आनन्दजनक भी है तथा उनसे 'बनारस नगर की अन्वर्थता प्रकाशमे आती है "पानि-जुगल-पुट-सीस धरि, मानि अपनपौ दास। आनि भगति चित जानि प्रभु, वन्दौ पास-सुपास ॥१॥ गंग माहि आइ धसी द्वै नदी वरुना असी, बीचि बसी बानारसी नगरी बखानी है। कसिवार देस मध्य गांउ तातै कासी नांउ, श्री सुपास पासको जनम भूमि मानी है। तहां दुहू जिन सिवमारग प्रगट कोनौ, तब सेती सिवपुरी जगत में जानी है। ऐसी विधि नाम थपे नगरी बनारसीके, और भांति कह सो, तो मिथ्यामत-वानी है ॥२॥" महाकवि की 'बनारस' इस नाम पर बडी आदर भावना प्रतीत होती है; उनकी सुरुचि आत्म-स्वरूपकी ओर बढी इसे वे पारस प्रभुके जन्मसे पुनीत बनारस नगरीका प्रसाद मानते है। और वे अपने अन्त करण की निर्मल और अत्यन्त स्फीत भक्ति को इस अमर पद्य द्वारा व्यक्त करते है "जिन्हके वचन उर धारत जुगल नाग, भए धनिंद पदमावती पलकमें।
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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