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________________ अहिंसाके आलोकम १५५ पालन और युद्धका जीवन व्यतीत करो। खाली लम्बी जिन्दगीसे क्या फायदा ११ ___ वह यह भी कहता है "जो देश दुर्वल और घृणास्पद वन गए है, वे यदि जीवित रहना चाहते है तो उन्हे युद्ध रूप औषध ग्रहण करनी चाहिये। मनुष्यको युद्धके लिए शिक्षा दी जानी चाहिए और स्त्रियोको योद्धाओके मनोरजन करनेमे विज्ञ वनाना चाहिए। इसके सिवाय अन्य बाते वेसमझी की है। क्या आप यह कहते है कि पवित्र उद्देश्यके कारण युद्ध भी पवित्र हो जाता है? मेरा तो आपसे यह कहना है कि अच्छा युद्ध प्रत्येक उद्देश्य को स्वय पवित्रता प्रदान करता है ।" इस प्रकारकी युद्धनीतिकी दुर्बलता वर्तमान युद्धके परिणामने ही प्रकट कर दी। हार्वर्ड युनिवर्सिटीके तत्त्वज्ञानके प्रो० डा० जार्ज सान्तायनने युद्धपर गम्भीर विचारकर जो वात युद्धके पूर्व लिखी थी वह यूरोप की रक्त-रजित भूमिमे आज दृष्टिगोचर हो रही है। डॉ. जार्जने लिखा था-"युद्ध राष्ट्रको सम्पत्तिका नाग करता है, उद्योगोको वन्द करता है, राष्ट्रके तरुणोको स्वाहा कर देता है, सहानुभूतिको सकीर्ण बनाता है और साहसी-सैनिक वृत्तिवालो द्वारा शासित होनेके दुर्भाग्यको प्राप्त कराता है। वह भावी पीढीकी उत्पत्तिका भार दुर्वल, बदसूरत, पौरुष १. "विशालभारत" सन् ४१ से। २ “For nations that are growing weak and contemptible war may be piescribed as a remedy, if indeed they want to go on living Man shall be trained for war and woman for the recreation of the warrior, all else is folly Do ve, say that a good cause halloweth even war? I say to you a good war halloweth any cause" Quoted in "Religion and society p. 199
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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