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________________ १५४ जैनशासन कमी हो तो उसे आसक्ति छोड युद्धमे सम्मिलित होना होगा। इसके सिवा कोई चारा ही नहीं है। अनासक्तिपूर्वक कार्य करनेमे और आसक्तिपूर्वक कार्य करनेमे बन्धकी दृष्टिसे बडा अन्तर है। ___ कोई-कोई लोग युद्धको आवश्यक और शौर्यवर्धक मान सदा उसके लिए सामग्रीका सचय करते रहते है और युद्ध छेडनेका निमित्त मिले या न मिले किसी भी वस्तुको बहाना बना अपनी अत्याचारी मनोवृत्तिकी तृप्तिके लिए सग्राम छेड देते है। उन लोगोकी यह विचित्र समझ रहती है कि बिना रक्तपात तथा युद्ध हुए जातिका पतन होता है और उसमे पुरुषत्व नहीं रहता-There are panegyrists of war who say that without a periodical bleeding a race decays and loses its manhood :? जर्मनीको युद्धस्थलमे पहुँचनेकी प्रेरणा करनेवाला जर्मन विद्वान् नोटश युद्धको मानो धर्मका अग मानता हुआ जोरदार शब्दोमे युद्धकी प्रेरणा करता हुआ कहता है-“सकटमय जीवन व्यतीत करो। अपने नगरोको विसूवियस ज्वालामुखी पर्वतकी वगलमे बनाओ। युद्धकी तैयारी करो। मैं चाहता हूँ कि तुम लोग उनके समान बनो, जो अपने शत्रुओकी खोजमे रहते है। मैं तुम्हे युद्धकी मन्त्रणा देता हूँ, मेरी मन्त्रणा शान्तिकी नही, विजयलाभकी है। तुम्हारा काम युद्ध करना हो, तुम्हारी शान्ति विजय हो। अच्छा युद्ध प्रत्येक उद्देश्यको उचित बना देता है। युद्धकी वीरताने दयाकी अपेक्षा बडे परिणाम पैदा किए है। तुम्हारी दयाने नही, वीरताने अबतक अभागे लोगोकी रक्षा की है। तुम पूछते हो नेकी क्या है ? वीर होना नेकी है। सुन्दर और चित्ताकर्षक होने का नाम नेकी नही है। यह बात कुमारियोको कहने दो। आज्ञा १ Article on 'War' by Dr Prof of Harvard University George Santayana,
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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