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________________ अहिसा के आलोक मे १५१ भीषण चक्र अस्त्र द्वारा सम्पूर्ण राजसमूहको जीता था, महान् उदयशाली उनने समाधि-ध्यानरूपी चक्रके द्वारा वडी कठिनतासे जीतने योग्य मोहवलको पराजित किया। गृहस्थ जीवनकी असुविधाओको ध्यानमे रखते हुए प्राथमिक साधक की अपेक्षा उस हिंसाके सकल्पी, विरोधी, आरम्भी और उद्यमी चार भेद किए गए है । सकल्प निश्चय या इरादा ( Intention ) को कहते है । प्राणघातके उद्देश्यसे की गई हिंसा सकल्पी हिंसा कहलाती है । शिकार खेलना, मास भक्षण करना सदृग कार्योंमे सकल्पी हिंसाका दोप लगता है। इस हिंसा कृत, कारित अथवा अनुमोदना द्वारा पापका सचय होता है । साधकको इस हिंसाका त्याग करना आवश्यक है। विरोवी हिसा तव होती है, जब अपने ऊपर आक्रमण करनेवाले पर आत्मरक्षार्थ 'गस्त्रादिका प्रयोग करना आवश्यक होता है। जैसे अन्याय वृत्तिसे परराष्ट्रवाला अपने देशपर आक्रमण करे उस समय अपने आश्रितोकी रक्षाके लिए सग्राममें प्रवृत्ति करना । उसमे होनेवाली हिसा विरोधी हिसा है | प्राथमिक साधक इस प्रकारकी हिसासे वच नही सकता । यदि वह आत्मरक्षा और अपने आश्रितोके सरक्षणमें चुप होकर बैठ जाए तो न्यायोचित अधिकारोकी दुर्दशा होगी। जान-माल, मातृ जातिका सन्मान आदि सभी सकटपूर्ण हो जाएँगे । इस प्रकार अन्तमें महान् धर्मका व्वस होगा। इसलिए साधनसम्पन्न समर्थ शासक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित रहता है, अन्यायके प्रतीकारार्थं शान्ति और प्रेमपूर्ण व्यवहारके उपाय समाप्त होनेपर वह भीषण दण्ड प्रहार करनेसे विमुख नही होता । इस प्रसगमे अमेरिकाके भाग्य विधाता अब्राहमलिकनके ये शब्द विशेष उद्बोधक है, "मुझे युद्धसे घृणा है और मैं उससे बचना चाहता हूँ | मेरी घृणा अनुचित महत्त्वाकाक्षा के लिए होनेवाले युद्ध तक ही सीमित है । न्याय रक्षार्थं युद्धका आह्वानन वीरताका परिचायक है। अमेरिकाकी
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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