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________________ प्रवुद्ध-साधक १०५ यदि दिगम्बर जैन मुनिका साक्षात् दर्शन अथवा परिचय महाकविको प्राप्त हुआ होता, तो उसकी यह जिज्ञासा शान्त हुए बिना न रहती । दिगम्बर मुनिका जीवन व्यतीत करनेके लिए महान् आत्मवल चाहिए। मानसिक कमजोरी या प्रमाद क्षणभरमें इस जीवको पतित कर सकते है। उज्ज्वल भावनाओ और विषय विरक्तिकी प्रेरणासे महान् पुण्योदय होने पर किसी विरले माईके लालके मनमें वालकवत् निर्विकार दिगम्बर मुद्रा धारण करनेकी लालसा जाग्रत् होती है । आचार्य गुणभद्र लौकिक वैभव, प्रतिष्ठा, साम्राज्य - लाभ आदिसे अधिक विशाल सौभाग्य मुनित्वकी ओर जानेवालेका वताते है, अन्यका जीवन जहा विषय - 1 लोलुपताके कारण पराधीनता और विपत्तिपूर्ण है, वहा अहिंसामय साधुको जीवनी अभय और आनन्दका भण्डार है । गुणभद्र स्वामी अपने आश्चर्यको इन शब्दो प्रतिबिम्बित करते है "न जाने कस्येदं परिणतिरुदारस्य तपसः " - आत्मानुशासन ६७ । दिगम्वर साधुओका उल्लेख अन्य सम्प्रदायोमे भी पाया जाता है। परमहंस नामक हिन्दू साधु नग्न रहा करते है। सिक्खोके यहा श्रेष्ठ रूपमे दिगम्बर साधु वर्णित है ।' अब्दुलकासिम जीलानी मुस्लिम साघुने दिगम्वरमुद्रा धारण की थी । अब्दल नामके उच्च मुस्लिम साधु पूर्णतया नग्न विहार करते हैं । १ Wilson's “Religious Sects of the Hindus " P. 275. २ " Abul Kasim Gilani discarded even hon strip and remained completely naked "-From Religious life & attitude in Islam - P. 203 ३ “The higher Saints of Islam called 'Abdals' generally went about perfectly naked "-Mysticism and Magic in Turkey-Quoted in the Digamber Saints of India.
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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