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________________ प्रबुद्ध-साधक १०१ "अन्तर विषय वासना वरतै, बाहर लोक-लाज भय भारी । तातै परम दिगम्बर मुद्रा, घर नहिं सके दीन संसारी ॥" किन्तु वीर पुरुषोकी बात और प्रवृत्ति ही निराली है। कवि इसीसे कहते है "ऐसी दुद्धर नगन परीषह, जीत साधु शील व्रतधारी। निर्विकार बालकवत् निर्भय, तिनके पायन ढोक हमारी ॥" योगवासिष्ठमे जिनेन्द्रकी दिगम्बर और शान्त परिणतिसे प्रभावित हो रामचन्द्र अपनी अन्तरग कामना इन शब्दोमे व्यक्त करते है "नाहं रामो न मे वाञ्छा भावेषु न च मे मनः। शान्तिमास्थातुमिच्छामि स्वात्मन्येव जिनो यथा ॥" भर्तृहरि अपने वैराग्यशतकमें अपनी आत्माकी आवाज इन शब्दों मे व्यक्त करते है-"प्रभो, वह दिन कब आएगा जव मै स्वतत्र, निस्पृह, शान्त, पाणिपात्रभोजी, दिगम्बर मुनि बन कर्म नाश करनेमे समर्थ होऊँगा।" भारतीय इतिहासके उज्ज्वल रत्न चन्द्रगुप्त, अमोघवर्ष सदृश नरेन्द्रोने आत्माकी निर्मलता और निराकुलताके सम्पादन निमित्त स्वेच्छासे विशाल साम्राज्योका त्याग कर दिगम्बर साधुकी मुद्रा धारण की थी। स्टीवेन्सन नामक आग्ल महिला लिखती है-''वस्त्रोसे विमुक्त १ एकाको निस्पृहो शान्तः पाणिपात्रो दिगम्बरः। । कदाह सम्भविष्यामि कर्मनिर्मूलनक्षमः ।। Being rid of clothes one is also rid of a lot of other worries. No water is needed in which to wash them The Norgranthas have forgotten all knowledge of good and cvil Why should they require clothes to hide their nakedness.' Heart of Jaamsm ( पृ० ३५)
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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