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________________ १०२ जैनशासन होने के कारण मनुष्य के पास अन्य अनेक चिन्ताएँ नही रहती । उसे कपड़े धोनेके लिए पानीकी भी आवश्यकता नही है । निर्ग्रन्थ लोगोने-दिगम्बर जैन मुनियोने भले-बुरेके भेद-भावको भुला दिया है। भला वे लोग अपनी नग्नताको छिपानेके लिए वस्त्रोको क्यो धारण करे ।" एक मुस्लिम कवि तनकी उरयानी - दिगम्बरत्वसे प्रभावित हो कितनी मधुर बात कहता है "तनको उरयानीसे बेहतर है नही कोई लिबास । यह वह जामा है कि जिसका नही उलटा सीधा ॥" शायर जलालुद्दीन रूमीने सासारिक कार्योंमे उलझे हुए व्यक्तिसे आत्म-निमग्न दिगम्बर साधुको अधिक आदरणीय कहा हैं। वे कहते है ( कि वस्त्रधारी 'आत्मा' के स्थानमे 'धोबी' पर निगाह रखता है । दिगम्बरत्व का आभूषण दिव्य है "मस्त बोला सुहतसिव से कामजा, होगा क्या लंगे से नू ओहदावरा । है नजर धोबी पै जामापोश की, है तजल्ली जेनरे उरियातनी ॥ " इस प्रसगमे यह बात विशेष रीतिसे हृदयगम करनेकी है, कि शरीरका दिगम्बरत्व स्वय साध्य नही, साधन है। उसके द्वारा उस उत्कृष्ट अहिंसात्मक वृत्तिकी उपलब्धि होती है, जो अखण्ड शान्ति और सर्वसिद्धियोका भण्डार है । दिगम्बरत्वका प्राणपूर्ण वाणीमे समर्थन करनेवाले महर्षि कुन्दकुन्द जहा यह लिखा है कि- "जग्गो हि भोक्खमग्गो, सेसा उमग्गया सव्वे”--दिगम्बरत्व ही मोक्षका मार्ग है, शेष सब मार्ग नही है" वहा वे यह भी लिखते है कि शारीरिक दिगम्बरत्वके साथ मानसिक दिगम्बरत्व भी आवश्यक है । यदि शरीरकी नग्नता साधन न हो, साध्य होती, तो दिगम्बरत्वकी मुळासे अकित पशु-पक्षी आदि सभी प्राणियोको मुक्त होते देर न लगती । जो व्यक्ति इस बातका स्वप्न देखते है, कि वस्त्रादि होते 1
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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